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सर्वतोभद्र पुरुष : सर्वतोभद्रा का आलिंगन
· · यह क्या हुआ कि चलते-चलते औचक ही लौट कर उलटे पैरों फिर कूर्मग्राम की ओर चल पड़ा हूँ। यह परिक्रमा किस लिये ? यह प्रतिक्रमण क्यों ?
ओ, · · 'वेशिका-पुत्र वैशिकायन । तेरी विषम तापाग्नि का आवाहन सुन रहा हूँ। तेरे जीवन का चित्रपट आँखों के सामने से गुजर रहा है। .. देख रहा हूँ, तेरे जन्म की वह अँधियारी संकट-रात्रि । तेरे खेटक ग्राम को चोरों ने लूट लिया। तेरा पिता उस आक्रमण में मारा गया। प्राण-रक्षा के लिये भागती तेरी गर्भवती माँ वेशिका ने तुझे एक पेड़ के नीचे जन्म दिया। सद्य प्रसूता वेशिका को चोरों ने पकड़ लिया। उसके रूप-लावण्य के लोभी तस्करों ने बालक को बलात् वहीं पेड़ तले उससे छुड़वा दिया । प्रातःकाल गोबर ग्राम का धनी आहीर-पति गौशंखी अपनी वन्ध्या स्त्री बन्धुमती के साथ उधर से निकला। ईश्वरीय वरदान समझ उस सुन्दर बालक को उन्होंने अपने पुत्र रूप में अंगीकार कर लिया। उनके लाड़-कोड़ में पल कर, एक दिन तू सुन्दर तेजस्वी युवान हो गया । . .
- - ‘उधर तेरी सुन्दरी माँ वेशिका को चोरों ने चम्पा नगरी के चौराहे पर एक वेश्या के हाथों बेच दिया। कालान्तर में वह अप्सराओं को भी लजाने वाली रूपसी, चम्पा की प्रख्यात गणिका हो गई। · · ·और वैशायन, योगायोग कि, तू व्यापार निमित्त चम्पा आया। एक रात गणिका-चत्वर के किसी भवन की खिड़की पर खड़ी, एक परमा सुन्दरी गणिका पर तेरी दृष्टि पड़ गई । अनिरि थी वह रूप की कजरारी मोहरात्रि !
· · 'फूलों की शैया पर वारांगना को सम्मुख पा कर, तू उस चेहरे को ताकता ही रह गया। तेरे प्राण जाने कैसी जन्मान्तरीण विरह-वेदना से कातर हो आये। तेरे चित्त में हिल्लोलित काम सहसा ही अवरुद्ध हो गया। · · वह गणिका तेरे निहोरे कर के हार गयी। पर तू अविचल, मूक पत्थर का देवता हो रहा । · · 'तूने उस रूपसी को अपनी वेदना से विवश कर दिया, कि वह अपनी पूर्व-कथा सुनाये । · · ‘सुन कर एक गहरी आशंका से तू सन्न हो गया।
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