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________________ ९१ 'सैनिको, बाँधों इनकी मुश्कें, और ले चलो गांव में। मार खा कर ही ये भूत बोलेंगे।' सैनिक हम दोनों को एक ही मुंज की रस्सी से कस कर बाँधने लगे । मैं अप्रतिरुद्ध भाव से लहरा कर चुपचाप बँधता चला गया । गोशालक मुझसे चिपट कर कराहने लगा। मैंने उसे ताक कर चुप कर दिया । - ‘सैनिक हमारे रज्जु-बद्ध शरीरों को कन्धों पर लाद कर, ग्राम में लाये । कालहस्ति ने लकड़ी के भारे की तरह, हमें ला कर अपने भाई मेघ के समक्ष पटकवा दिया । ..'अरे मेघ ये इन्द्रजाली चोर हैं । अपनी माया से जंगल जगाते हैं । ओखले के मूसल से कुट कर ही ये अपना भेद बतायेंगे । ये बड़े ढीठ जान पड़ते हैं। कछुवों की मोटी खाल कूटने पर ही बोलेगी।' आँगन में एक बड़ा सारा पत्थर का ओखला गड़ा हुआ है। हमें मुशर्के खोल कर खड़ा कर दिया गया । फिर मेघ गरजा : _ 'अरे दुष्टो, ताकते क्या हो, ओखल तुम्हारे सर की प्रतीक्षा में है । डालो इसमें अपने-अपने माथे !' __ और मैंने ओखल में सिर गड़ा कर अपने शरीर को उत्तान अधर में ठहरा दिया। गोशाला थरथराते अंगों, धमनी का मृदंग बजाता हुआ, भाग छूटने का उपक्रम करने लगा। कालहस्ति ने उसे ढकेल कर, उसका भी सिर मेरे साथ ओखल में दे दिया । 'चलाओ मूसल!' मेघ ने कड़क कर सैनिकों को आदेश दिया । गोशाला बिलख कर चिल्लाया : 'स्वामी · · · ई ई ई ई !' 'अरे मूर्ख, ओखले में सर दे दिया । अब मूसल से क्या डरना?' दो लोखण्डी मूसल हवा में तुलने लगे। : 'अगले ही क्षण एक हुंकार के साथ हम पर मूसलों के प्रहार होने लगे। - अरे यह क्या, मूसलों के आघात मानों हवा को खांड़ रहे हैं । ओखल में पड़े ठोस मस्तकों पर वे नहीं टकरा रहे । हवा को खांड़ते-खांड़ते सैनिकों को पसीने आ गये । मूसल धरती पर टेक कर वे हाँफते खड़े रह गये । कालहस्ति ने ललकारा : 'अरे इनके माथों को खाँडो सैनिको, हवा को क्यों कष्ट दे रहे हो?' 'स्वामी, इन जादूगरों ने हवा को बाँध दिया है। मूसल इन पर चोट नहीं करते। हम क्या करें !' सुनकर सब चकित-स्तम्भित हो रहे । कालहस्ती ने फिर गर्जना की : 'उठो मरदों, तुम्हारा भूत उतारना होगा । • सैनिक, बुलाओ खेचर तांत्रिक को!' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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