SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ का नीरव गीत गा रही हैं। हम केलि करेंगे, तो हमारे थपेड़ों से उन्हें चोट लगे. न । उनका आनन्द भंग हो जायेगा । तो उन्हें रोना आ जायेगा । तब हमारा तो सारा तन छिल जायेगा। ऐसी बातों से हमको दुख होता है, माँ तुम तो कुछ समझती भी नहीं ।' महारानी चुप हो गईं । वितर्क नहीं आया मन में । हैं: खुल पड़ी हैं। उनकी त्वचा बेहद संवेदित हो गई है। चारों ओर के वत्सल स्पर्शो से भर उठा है। अरे, वे तो केवल कण-कण की माँ हैं । बस, केवल माँ । शिशिर के सवेरे, परिचारिकाओं ने कुमार को नहला कर, सुगन्धित पद्ममकरन्द से अंगराग लेपित कर दिया। केशों को बेमालूम फुलैल - सुगन्धों से संवार कर, चूड़ा में मुक्ताबंध से हीरक-चन्द्र, बंकिम-सा अटका दिया । कलाइयों में afrat होंचियाँ, भुजाओं पर पतले-पतले मरकत के भुज-बन्ध । कमर पर नन्ही - नन्ही बजती घंटिकाओं की लटकन वाली करधौनी । टखनों पर सोने के घूंघुरवाले पायल । तब मुलायम रोमों का अंगा पहना न पहना कि उतार कर फेंक दिया । एकाएक जैसे जाग उठी रोया रोयां, जाने कैसे वर्द्धमान की माँ नहीं । 'नहीं, हमको शीत अच्छा लगता है । कुछ नहीं पहनेंगे ।' 'अरे कुमार, अब तो बड़े सारे दिखते हो। अच्छे बच्चे नंगे नहीं रहते । देखो न, कितना तीखा शीत है । अंग थरथरा रहे हैं ।' I 'देखो न, शीत हमारा मीत है । हमारे अंग तो नहीं थरथराते। हम अच्छे बच्चे थोड़े ही हैं । हम तो ख़राब बच्चे हैं। माँ कहती हैं, लालू बड़ा नटखट है । 'नटखट बच्चे नंगे ही डोलते हैं । तुम सब इतना भी नहीं समझतीं' ·?' ख़बर सुन कर महारानी आईं। 'अरे लालू, ऐसी खोटी हठ ठीक नहीं । देख बेटा, शीत लग जायेगा ।' 'शीत तो लग चुका माँ । अन्दर आ गया है + मुझे बहुत अच्छा लग रहा है ।' 'तेरी तो सब बातें उलटी हैं । सब काम उलटे करता है।' Jain Educationa International 'मैं तो जनम का ही उलटा हूँ, माँ, सीधा कब चला ! और देख लेना, आगे भी उलटा ही चलूंगा । सारी दुनिया से ठीक उलटा चलना हमको अच्छा लगता है । क्या करें!' और दासियाँ हार कर इधर-उधर व्यस्त हुईं, कि इतने में कुमार ग्रायब । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003845
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy