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'झूठा कहीं का, छुपाता है।'
'सच माँ, अच्छा लगता है । देखो वह हिमवान का कूट कितना अकेला है। और रात को नदी भी तो अकेली बहती है। . 'अरे वह देखो माँ, उस टहनी पर अकेली बैठी चिड़िया कित्ता बारीक गाती है । उसका गाना मैं समझने लगा हूँ।'
'नहीं, तुझे अब अकेला नहीं रक्खूगी कल से !'
'अकेला मैं कहाँ हूँ माँ ! · · 'मैं तो अपने साथ हूँ। अपन तो अपन के ही दोस्त हो गये हैं। और देखो न, यह हवा हर समय मेरे साथ है, मुझे दुलराती रहती है । और इत्ता बड़ा आसमान, सदा मुझे घेरे रहता है। छोड़ कर जाता ही नहीं कभी । और चाँद-सूरज, तारा-लड़कियाँ · · । और लड़के-लड़कियाँ तो छोड़कर भी चले जाते हैं। पर ये तो सदा के साथी हैं । इत्ते सारे खेल के सखासहेली । अब तुम्हीं बताओ, मैं अकेला कहाँ हूँ ?'
'अच्छा लालू, सारे दिन क्या सोचता रहता है ? बोलता ही नहीं किसी से !'
'हम तो कुछ भी नहीं सोचते। सब देखते रहते हैं। इत्ती सारी चीजें हैं देखने को। और जानने को भी कित्ता सारा है उनमें । चीज़ के भीतर चीज़ है। पिटारी के भीतर पिटारी है। देखने और जानने में कित्ता मज़ा आता है ! फिर सोचना क्या ? · · 'तुम भी देखो तो पता चले, माँ ? फिर सोच में कभी नहीं पड़ोगी । समझी कि नहीं - - !'
मां को लगा, उनकी बुद्धि से परे है ये बेटा। इसे पहचानना कठिन हो जाता है। इसे अपना कहने का साहस नहीं होता। पर आज उनसे रहा न गया, लगा जैसे कोख का जाया हाथ से निकला जा रहा है, पराया हुआ जा रहा है। एकदम मोहाकुल होकर उन्होंने उसे बाँहों में भर गोदी में बैठा लिया। फिर उसके माथे पर चिबुक टिका, अपनी उंगली से उसकी चिबुक उचका, उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में आँखें उँडेल भर्राये कण्ठ से पूछा :
'तू मेरा बेटा है न, मानू ?' 'अरे वाह माँ, यह भी क्या पूछने की बात है ! वह तो हूँ ही।' 'और तेरे बापू का बेटा है न ?' 'हां, तुम कहो तो उनका भी हूँ।' 'तू केवल मेरा बेटा है न, मेरा राजा बेटा !' लड़का ज़ोर से हँस पड़ा।
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