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करने लगता है। तो कभी बहुत प्यार से उसके केशपाश को अपने गले में लपेट कर, उसे चुम्बनों से ढांक देता है।
कभी उसके मन में आ जाये, तो माँ को आज्ञा देता है कि चुपचाप भद्रासन पर बैठ जाओ: हिलो-डुलो नहीं। एकदम चुप मूरत हो जाओ। फिर कक्ष में से आप कई शृंगार-मंजूषाएँ उठा लायेंगे। बड़े कौशल से मां का शृंगार-प्रसाधन करेंगे। फिर चुन-चुन कर अनेक अलंकारों से उनके हर अंग-प्रत्यंग को सजा देंगे। तब बड़ी कलात्मक उंगलियों से मां का केश-विन्यास कर, नित-नये ढंग से जूड़ा बांधेगे। स्वयं ही अपने मन चाहे नवीन वस्त्र उन्हें धारण करायेंगे। बीचबीच में मां और परिचारिकाएँ हँसी नहीं रोक पाती हैं, तो तर्जनी दिखा कर सबको धमकायेंगे : 'चुप · · 'चुप · · 'चप !' और फिर अनगिनती प्रदक्षिणा माँ के ओरे-दोरे देते हुए, मनचाहे गीत गायेंगे। और सब दासियों से अपने सद्य रचित गीतों की कड़ियाँ दुहरवायेंगे। और अचानक जाने कब माँ पर टूट पड़ेंगे, और उसके एक-एक अंग को ऐसे लाड़ से सहलायेंगे, दुलरायेंगे, चूमेंगे कि सारी परिचारिकाएँ हँस-हंस कर दुहरी हो जायेंगी। फिर बहुत सयाने बन माँ की गोद में राजा बन कर बैठ जायेंगे। तब धीरे से उनकी चिबुक उठा कर कहेंगे : 'हमने तुमको इत्ता प्यार किया : हमें प्यार नहीं करोगी?' माँ तब अपनी रुकी हुई उमड़न से उन्मुक्त होकर इस दुलारे को छाती में बांध लेने को बाहें उठायेंगी : तो पायेंगी कि निमिष मात्र में लालजी जाने कब छटक कर, सारी सेविकाओं के कंधों पर छलांगें भरते दूर जा खड़े हुए हैं, और ताली बजा-बजा कर अपनी विजय घोषित कर रहे हैं कि वर्द्धमान सबको पकड़ता है, बाँधता है, पर स्वयम् पकड़ाई में नहीं आता।
कुमार वर्द्धमान को खेल के साथियों की खोज नहीं। अकेले अपने साथ खेलने में उसे बहुत मज़ा आता है। अपने लिए कई स्वायत्त खेलों के आविष्कार वह हर दिन करता रहता है। उसका एक सबसे प्यारा खेल यह भी है कि महारानी के हीरक-दर्पण जटित कक्ष में चला जाता है। ऊपर-नीचे, और चारों दीवारों के दर्पणों में उसे अनन्त वर्द्धमान दिखायी पड़ते हैं। उन सबको एक साथ पकड़ने को वह कक्ष में चारों ओर बेतहाशा दौड़ लगाता है। अपने सहस्रों प्रतिबिम्बों को अलग-अलग कई नाम देकर पुकारता है। दीवार में झलकते किसी एक प्रतिबिम्ब को जी भर आलिंगन करता है, चूमता है, प्यार करता है, उससे तरह-तरह की पातें करता है। कभी उसे चिढ़ाता है, उस पर गुस्सा भी करता है, उसे चपतें भी लगाता है। अन्ततः श्रान्त होकर, बीच में सुवर्ण साँकलों पर डोलते इंगलाट पर जा लेटता है। छत में झलकते वर्दमान को लक्ष्य कर अपनी एक लम्बी साहस-यात्रा
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