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की कहानी सुनाता है। उपसंहार में कहता है : 'अरे देखो राजा, वहीं ठहरे रहना, हम सफेद घोड़े पर चढ़ कर, रात-दिन तुम्हारी ओर आ रहे हैं. • “एक दिन तुमसे मिलेंगे . फिर . .'और जाने कब बालक गहरी नींद में सो जाता है।
क्षत्रिय-कुण्डपुर के अनेक बालक-बालिकाओं के झुण्ड कुमार के साथ खेलने को आने लगे हैं। कुमार ने तमाम परिकर को आज्ञा दे दी है, कि सबको हमारे पास आने दो। राजमहल के सारे कक्ष, नगर के बालकों के लिए निर्बाध खुल गये हैं। पर कक्षों और दालानों में खेलना कुमार को पसन्द नहीं। वह तो पौर और प्रांगणों में सवेरे से ही आ धमकता है। सबको पुकारता है : 'आओ, अरे सब आओ, मैं आ गया, मैं आ गया !' बात की बात में सैकड़ों बालक-बालिकाओं के झुण्ड दौड़े चले आते हैं। कुमार उद्यान के किसी मर्मरी सिंहासन पर बैठ जाता है। फिर अपने इंगित से हर दिन कोई नया और मौलिक खेल रचाता है। खेलों को दुहराना उसे पसन्द नहीं : कुछ भी दुहराना उसका स्वभाव नहीं। अपने से लगा कर, अपने भोग-उपभोंग, लीला-खेल सबको वह हर दिन नये रूप में पाना चाहता है। रचना चाहता है। . कभी कहेगा : 'आओ, सब आओ, देखो मैं बीच में खड़ा हूँ। देखो मैंने हाय पसार दिये हैं। लड़कियो, मेरी पसरी बांहों को अपने माथों पर थामो। .. अच्छा, अब लड़को, तुम मेरी बांहों पर पंक्ति बांध कर खड़े हो जाओ। · · 'अच्छा, एक-एक लड़की मेरे कन्धे पर चढ़ जाओ । हो, अब एक लड़का इन दो लड़कियों के माथों पर लेट जाओ। बहुत अच्छा - 'मेरा सिंहासन बिछ गया - 'अब मैं उस पर बैठने को आता हूँ।' . . और फिर आप उछल कर ऐसी उड़ी लगायेंगे ऊपर को, कि सारे लड़के-लड़कियां पटखनी खा कर लुढ़कते दीखेंगे। और आप हवा में छलाँगें भरते नजर आयेंगे। हर बालक-बालिका उसे झेलने को हाथ पसारेंगे। तभी अचानक किसी बड़े-बड़े बालों वाली लड़की के दोनों कंधों पर पैर डाले, आप सिंहासन पर बैठे नजर आयेंगे।' : 'तो कभी क़तार-दरकतार, लड़के-लड़कियों को ऊपरा-ऊपरी चुनकर सतखण्डा महल बना देंगे। और उनके अगल-बगल के द्वारों में चक्कर लगाते हुए, सबसे ऊपर बैठी बालिका के सर पर जा बैठेंगे। इतना हलका-फुलका है यह बलशाली राजपुत्र, कि इसका भार किसी को पीड़क लगता ही नहीं। मानो इसे अपने ऊपर धारण कर वे सब अपने को हवा में तैरता-सा अनुभव करते हैं। ___ एक दिन राजकुमार अपसे राजोद्यान के सबसे ऊँचे पेड़ की फुनगी पर जा बैठे। फूलों और पत्तों के बीच से सर उठाये, उस वनस्पति-जगत को अपनी नन्हीं
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