________________
५५
और समस्त प्रजा श्री-सम्पदा से ढंक गये हैं। इसी से हम घोषित करते हैं कि यह बालक वर्द्धमान के नाम से पुकारा जाये।'
• • ‘बाल भागवत् वर्द्धमान की, समस्त लोकाकाश में व्यापती जय-जयकारों के साथ मेरी गहन ध्यान-समाधि उन्मग्न हो गई।
काल की धारा से बाहर की, किसी महा स्वप्नभूमि से सहसा इस स्थूल ऐन्द्रिक शरीर में लौट आया है। पर लग रहा है, इस जागति से वह स्वप्न अधिक सत्य था । अन्तर्ज्ञान में, अपार सृष्टियाँ एकबारगी ही झलकती रहती हैं। आज प्रतीति हुई कि हमारा ऐन्द्रिक ज्ञान कितना सीमित है। भीतर के अनन्त ऐश्वर्यलोकों से उसका किंचित् भी परिचय नहीं । चिन्मय भूमा से, मृण्मय भूमि में लौट आया हूँ।
· · ·पर इसी मृण्यमयी वैशाली के एक राजमहल में अन्तर-साम्राज्य का चक्रवर्ती प्रभु, रक्त-मांस की देह में जन्मा है । और अपने भीतर देखा वह स्वप्न इसी पृथ्वी पर प्रत्यक्ष साकार हुआ है। इन्हीं खुली आँखों से उसका सौन्दर्य, प्रताप
और पराक्रम देखा है । लग रहा है, मनुष्य की महावासना और चरम अभीप्सा का उत्तर मानवी नारी के गर्भ से सदेह अवतरित हुआ है।
उस परिपूर्ति को अन्तर्तम में अनुभव कर रहा है । पर उसे क्या संज्ञा दूं, नहीं जानता।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org