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________________ , ३० 'कोई इन आश्चयं घटनाओं का कारण नहीं बूझ पाता है । कई ज्ञानीविज्ञानी प्रयत्न करके थक गये। एक श्रमण आज सवेरे ही धुतिपलाश - चैत्य में आये थे । मेरे जिज्ञासा करने पर बोले : 'महारानी, इस रहस्य को खोलना उचित नहीं । द्रव्यों के अनन्त गुण और पर्याय हैं । कुछ भी संभव है। असंभव कुछ नहीं । ज्ञानी के लिए कुछ भी चमत्कार नहीं । सब हस्तामलकवत् है । अज्ञानी के लिए, सच ही यह रहस्य है, चमत्कार है, जादू है ।' और अन्त में मेरी ओर दृष्टि स्थिर कर बोले थे । 'प्रतीक्षा करो, प्रियकारिणी त्रिशला कुछ अपूर्व होने वाला है !' 'भगवन्, जिज्ञासा तृप्त करें। क्या होगा वह अपूर्व ?" 'कथन में आ जाये तो अपूर्व कैसा ! घटित होने पर जानोगी ही । प्रतीक्षा करो, प्रियकारिणी ! ' मैं पूछती रह गई । योनी चुपचाप चल दिये । I Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003845
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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