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के द्वारा निरूपित अनुसार ।
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द्रव्य के
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निरन्तर परिणमनशील स्वरूप के
सती चन्दना का कथा-प्रसंग श्वेताम्बर और दिगम्बर ग्रन्थों में विभिन्न रूप से वर्णित है । श्वेताम्बरों ने चन्दना को अंगराज दधिवाहन की पुत्री और चम्पा की राजकुमारी शील चन्दना बताया है । इस रूप में वह महावीर की बड़ी मौसी पद्मावती की बेटी के रूप में सामने आती है । दिगम्बरों ने चन्दना को वैशाली के गणनाथ महाराज चेटक की सबसे छोटी पुत्री और महावीर की लगभग समवयस्का छोटी मौसी कहा है । चन्दना का यह दूसरा रूप और उसकी समूची दिगम्बर कथा, मेरे कथाकार को अपने प्रयोजन के लिए अधिक उपयुक्त और कलात्मक लगी । समग्र कथा - प्रबन्ध जिस तरह मेरी कल्पना में उद्भावित ( कन्सीव) हुआ है, उसमें हमजोली मौसी चन्दना ही अधिक संगत प्रतीत होती है। चम्पा की राजकुमारी शील चन्दना को मैंने एक अतिरिक्त पात्र के रूप में अंगीकार कर लिया है, और उसे एक विशिष्ट प्रतीकात्मकता प्रदान कर दी है। प्रसंगतः यहाँ यह स्पष्ट कर दूँ. कि इस पूरे उपन्यास में पात्रों की वय-निर्णय के झमेले में मैं क़तई नहीं पड़ा हूँ । एक काल-खण्ड विशेष में कई पात्र घटित हैं। उनके बीच के सम्बन्ध और कथा - सन्दर्भ ही अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। एक सुरचित कथा-श्रृंखला में यथास्थान वे आ गये हैं। उनकी उम्रों को लेकर मेरे पाठक या समीक्षक विवाद में न पड़ें । क्योंकि उस हद तक की तथ्यात्मकता को मैंने मूलतः ही अस्वीकार कर दिया है।
मेरे कवि के अन्तः साक्षात्कार (विजन) में, चन्दना भगवान के साथ भगवती के रूप में खड़ी दिखायी पड़ती है । सच्चिदानन्द प्रभु की अन्तःस्थ आह्लादिनी शक्ति, उनकी अभिन्नात्म धर्म - सहचारिणी, पुरुषोत्तम की आत्मसहचरी, उन्हीं की क्रियाशील चिद्शक्ति का एक साकार विग्रह । उनकी परब्राह्मी आत्मा के सौन्दर्य और ऐश्वर्य की एक सांगोपांग अभिव्यक्ति । उनके अन्तःस्थ महाभाव और महाकारुणिक प्रेम की, सर्वचराचर को सुलभ एक मातृ-मूर्ति । जगदीश्वर के साथ खड़ी त्रिलोक और त्रिकाल की जगदीश्वरी माँ : छत्तीस हजार आर्यिका संघ की अधिष्ठात्री महासती चन्दनबाला । नारीत्व का वह सारांशिक परम सौन्दर्य और प्रेममय स्वरूप, जो सहस्राब्दियों के आरपार, मानव - इतिहास की कई पीढ़ियों को एक जगद्धात्री दूध की धारा की तरह आप्लावित करता चला जाता है । इस प्रकार मेरी चन्दना के
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