________________
उलट कर,
प्रकृति को उसकी मौलिक सम्वादिता में स्थापित करता चला जा मेवा । तीर्थंकर का धर्मचक्र प्रवर्तन और किसे कहते हैं, तात ?'
३१४
.....
'तो महावीर के धर्म चक्र प्रवर्तन की हम प्रतीक्षा में हैं । एकमात्र आशा है । तो अब चलूंगा । तत्काल वैशाली जा रहा हूँ । आशा का सन्देश परिषद् तक पहुँचाऊँगा ।'
Jain Educationa International
मैं द्वार तक उन्हें पहुँचाने गया । कितने सुबोध, भोले, निरीह, निश्छल हैं मेरे बापू ! धीर निश्चल पग लोटते अपने उन पिता की पीठ देख, एक अजीब आश्वस्ति अनुभव हुई । "
वही हमारी तुम्हारा मह
For Personal and Private Use Only
00
www.jainelibrary.org