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सारी राज्य- सीमाएँ, संधियाँ, संरक्षण, स्वतंत्रताएँ अवैध और ग़ैर क़ानूनी हैं। क्योंकि ये असत्य, अधर्म, हिंसा और होड़ों पर टिकी हैं ।
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'बलशाली स्थापित स्वार्थ ने ही सिक्के का आविष्कार किया है । अधर्म का सुदृढ़ दुर्ग है यह सिक्का । सिक्का है कि संचय, स्वार्थ- पोषण, शोषण, और स्वामित्व की सुविधा सम्भव और निर्बाध हो गई है। स्वभावगत, सम्वादी, सुखी और शान्तिपूर्ण जीवन-जगत के अभ्युदय के लिए यह अनिवार्य है कि सिक्का और उस पर टिके राज्य और वाणिज्य समाप्त हो जायें। सिक्के ने जीवित मनुष्य और मनुष्य के बीच के, जीवित वस्तु और मनुष्य के बीच के, सम्बन्धों को जड़ीभूत कर दिया है। सिक्के ने सत्ता का स्वत्व छीन लिया है, सत्व छीन लिया है। जब तक सिक्का है, व्यक्ति और वस्तु की मूलगत स्वतंत्रता का धर्मराज्य स्थापित नहीं हो सकता । सिक्के ने मनुष्य और जगत की सारी सुन्दरताओं और भावनाओं को व्यवसाय बना दिया है। सिक्के पर fe वाणिज्य ने आत्मा की सती सुन्दरी को वेश्या बना कर छोड़ दिया है ।'
'यह सिक्के का ही प्रताप है कि वैशाली में भगवती अम्रपाली को गणिका के कोठे पर बैठा दिया गया है। उसे प्राप्त करने का मूल्य हिरण्य है, प्यार नहीं, आत्माहुति नहीं । हमने माँ को यज्ञ की वेदी पर से उतार कर, भोगदासी बना दिया है । भन्तेगण, सावधान, आम्रपाली वैशाली के भाग्य की निर्णायक है। जब तक वह माँ हमारी वासना की जंजीरों में बँधी है, वैशाली का विनाश अनिवार्य है । केवल भगवती आम्रपाली में यह सामर्थ्य है कि वह वैशाली को सत्यानाश की लपटों से बचा सकती है । मैं यहाँ केवल माँ के उस धर्म - शासन का सन्देश सुनाने को उपस्थित हुआ हूँ ।
'कामिनी और कांचन जब तक भोग की भूमि से उठ कर योग की भूमि पर उत्तीर्ण नहीं हो जाते, तब तक आक्रामक श्रेणिक, अजातशत्रु और पार्शव के शासानुशासों की परम्परा का अन्त नहीं हो सकता । जब तक सर्वस्वहारी श्रेष्ठि हैं, और उनके वाणिज्य का संवाहक सिक्का है, तब तक श्रेणिविग्रह और आक्रमणकारी श्रेणिक सुरसा की चोटी होते ही चले जायेंगे ।
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इसी से मैं स्वार्थ-व्यस्त राज्य, वाणिज्य, सिक्का और उसके व्यवस्थापक तमाम क़ानूनों को तोड़ने आया हूँ। मैं इस झूठे क़ानून पर आधारित सारी सरहदों और मर्यादाओं का भंजन करने आया हूँ ।
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