________________
२६१
‘औचक ही कास्य-घंट पर रजत-दण्ड का गम्भीर आघात हुआ। सन्नीपात भेरी तीन बार बज कर चुप हो गई। परिषद का उपोद्घात करते हुए चेटकराज ने खड़े होकर कहा : ____ 'भन्तेगण सुनें। दिव्य है आज का यह मंगल-मुहूर्त । लिच्छवि कुल के देवांशी आर्यपुत्र वर्द्धमान आज हमारे बीच उपस्थित हैं। समकालीन विश्व के आकाश उनकी कीति से गंजायमान हैं। सूर्य सम्मुख है। वह स्वयं ही अपना परिचय है। आप सब की चाह पर वे यहाँ आये हैं। आपकी ओर से उनसे निवेदन है कि वे अपनी वाणी से वैशाली को कृतार्थ करें।'
खड़े होकर मैंने अपने को यों सम्बोधन करते सुना :
'भन्तेगण सुनें। आपके सम्मुख हूँ, माँ वैशाली के चरणों में प्रस्तुत हूँ। तो अपने होने को धन्य मानता हूँ। एक अनुग्रह का प्रार्थी हूँ। भन्तेगण, एक बार मेरे निवेदन को पूरा सुनें। फिर कोई प्रश्न उठे, तो उत्तर मुझ से आयेगा ही।
'यहाँ आने वाला मैं कौन होता हूँ। लगता है कि बुलाया गया हूँ, लाया गया हूँ। भेजा हुआ आया हूँ । आयोजन उसी महासत्ता का है। मैं यहाँ इस क्षण उसी के द्वारा नियुक्त हूँ। वही बोलेगी, मैं नहीं । वैशाली के तोरण में प्रवेश करते ही पाया है, कि अपने को रख नहीं सका हूँ। केवल अपने को होते हुए देख रहा हूँ।
''सुना कि वैशाली संकट में है, और आवाहन है कि उसके त्राण की तलवार और ढाल बन् । सो तलवार और ढाल त्याग आया : स्वयम् वह बन कर इस कसौटी पर अपने को परखने आया हूँ । कृतज्ञ हूँ आप सब का कि अपने को पहचानने का यह अवसर आपने मुझे दिया है।
'भन्तेगण, सुनें । यदि वैशाली आक्रान्त है तो मैं उसे बचाने नहीं आया, आक्रमण तले उसे बिछा देने आया हूँ। मैं युद्ध को प्रतियुद्ध से पराजित करने नहीं आया। मैं युद्ध को स्थगित करने नहीं आया, उसे अन्तिम रूप से लड़ कर समाप्त कर देने आया हूँ। मैं संधियों पर ठहरी भयभीत शांति को कायम रखने नहीं आया, उसे सदा के लिये भंग कर देने आया हूँ। ___...क्यों है एक आक्रान्त और दूसरा आक्रामक ? क्योंकि कोई अधिकार किये है, तो कोई अधिकार किया चाहता है। क्योंकि कुछ मेरा है, कुछ तेरा है। और मेरा-तेरा जव तक है, युद्ध रहेगा ही । मैं और मेरा है, कि
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org