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के बल नहीं, शस्त्र-अस्त्र के बल नहीं, अपने ही बाहु और आत्म के बल पर वह लड़ेगा। वह एक साथ हर मोर्चे और हर पक्ष पर लड़ेगा । वह वैशाली की ओर से मगध के विरुद्ध लड़ेगा। वह मगध की ओर से वैशाली के विरुद्ध लड़ेगा। हर पक्ष उसका होगा : कोई पक्ष उसका नहीं होगा। धर्म का ध्रुव ही उसका एकमात्र राज्यासन और मोर्चा होगा। · · मेरा सीमांत मेरे भीतर है, और वहाँ मेरा युद्ध आरंभ हो चुका है। इस युद्ध में पुरुष ही नहीं, स्त्रियाँ भी लड़ेंगी। चेलना अब और मगध के अंतःपुर की बंदिनी हो कर नहीं रह सकेगी। · ·शील-चंदना से कह देना, महावीर उसके साथ है। वह निर्भय हो जाये ! • . . '
'और मगधेश्वर के लिए तुम्हारा क्या संदेश है, मान?'
'उनके साम्राज्य-स्वप्न को मैं पूरा करूँगा। उनकी हर चाह को मैं पूरा करूँगा । उनसे अधिक मैं जानता हूँ, वे क्या चाहते हैं ।'
'और मेरी वैशाली का तुम्हें कोई दर्द नहीं ?'
'वैशाली अजेय है। वह कुछ योजनों और महालयों में बसा मात्र एक महानगर नहीं। इस सुवर्ण-रत्नों के प्रासादों वाली वैशाली का ध्वंस कोई कर भी सकता है। पर इस वैशाली के भीतर एक और वैशाली है। वह अविनाशी और अनतिक्रम्य है। वह प्राणि मात्र के स्वातंत्र्य की यज्ञ-वेदी है। मगधेश्वर से कह देना, कि उसका अग्निहोत्री वर्द्धमान महावीर है। मगध की तो बात दूर, कोई बड़ी से बड़ी देवी, दानवी या मानवी सत्ता भी उसका विनाश नहीं कर सकती। इक्षवाकुओं का सूर्य कभी अस्त नहीं हो सकता ! . . .'
. 'मेरे राजा बेटे, मेरे वर्द्धमान, शत-सहस्र संवत्सर जियो ! तुम कितने अच्छे हो । 'कितने बड़े हो तुम ! राजगृही आओ वर्द्धन, तुम्हें पा कर मगध की हवाओं का रुख बदल जायेगा। · वे तुम्हें पा कर कितने प्रसन्न होंगे, तुम्हें कल्पना नहीं। सुनो, मैं जानती हूँ, वे मन ही मन तुम्हें बहुत प्यार करते हैं। . .'
'मुझे पता है, मौसी। आसमान की तरह निर्लेप है श्रेणिक की आत्मा । यह मेरे और तुम्हारे सिवाय और कोई नहीं जानता। सब मुझ पर छोड़ दो, और तुम निश्चित होकर जाओ। वैभार पर्वत की कूट-शिलाएँ मेरी पगतलियों में कसक रही हैं। राजगृही के चैत्य-काननों में एक दिन अचानक तुम मुझे विचरता पाओगी । मगधेश्वर से कह देना कि अपनी सेनाओं के बल पर वे वैशाली को त्रिकाल भी नहीं जीत सकेंगे । चाहें तो वर्द्धमान के बल पर
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