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और मगध के बीच का विग्रह मिट नहीं सकता। इसमें जो पहल करेगा, साम्राज्य उसी का होगा। उसमें हार-जीत से परे वैशाली और मगध, हर राज्य, देश, जाति, व्यक्ति, कण-कण अपनी सत्ता में स्वतंत्र रह कर एक-दूसरे के सहयोगी होंगे, सहधर्मी और सहकर्मी होंगे । इससे उल्ली तरफ का कोई मार्ग मेरा नहीं । मेरा युद्ध अन्तिम और सीमान्तक है, मां । प्राणि-प्राणि, जीव-जीव, वस्तु-वस्तु, अणु-अणु के बीच पड़ी अज्ञान और अन्धकार की अभेद्य खाइयों को भेदे और पाटे बिना, मुझे चैन नहीं, विराम नहीं । मेरी दिग्विजय उसके बिना अखण्ड और सम्पूर्ण नहीं हो सकती । केवल इसी राह मगधजय सम्भव है। केवल इसी राह वैशाली का त्राण सम्भव है। केवल इसी राह प्रत्येक जन, जाति, राष्ट्र, व्यक्ति का स्वातंत्र्य और गणतंत्र सम्भव है । और सारे स्वातंत्र्य और गणतंत्र मरीचिका और इन्द्रजाल हैं, जिन्हें स्थापित स्वार्थी सत्ता-सम्पदा-स्वामियों ने, प्रजा को भुलावे में रख कर एकछत्र प्रभुता भोगने को रच रक्खे हैं। · · · महावीर इतिहास के इस चिरकालीन पाखण्ड और द्वैत का अन्तिम रूप से पर्दा फ़ाश करने आया है। आदर्श और वास्तव, निश्चय
और व्यवहार के स्वार्थ-पोषित छद्म भेद विज्ञान की ओट ही इतिहास के सारे युद्ध, विग्रह और व्यक्तिगत कलह पर्वरिश पाते रहे हैं। मैं विग्रह के इस मूल को ही सदा के लिए उच्चाटित कर देने आया हूँ, माँ ! तुम देखती जाओ, क्या होता है. . .' ___.. चेलना बहुत बैचेन आई है, बेटा। अब तो उसे समझा कर सुला दिया है। कब मिल सकेगा उससे तू ?'
'तुम जब, जहाँ कहो, माँ !' 'मेरे खण्ड में, सबेरे . .?' 'उपस्थित पाओगी मुझे, ठीक समय पर, अम्मा !' · · ·और मां आश्वस्त पगों से जाती दीखीं।
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