SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ _ 'सुने भन्ते तात, हिमा का सम्बन्ध शस्त्र-प्रहार या शस्त्र-त्याग से नहीं । तलवार चलाने न चलाने, काटने न काटने जैसी स्थूल क्रियाओं में हिमा-अहिंसा ममाहित नहीं, सीमित नहीं । हिंसा या अहिमा का सम्बन्ध विशुद्ध आत्मपरिणाम से है, मनुष्य के अन्तर्तम भाव से है। द्रव्य-हिंसा तो उसकी एक फलस्वरूप क्रिया मात्र है । द्रव्यतः तो कौन किसको काटता है, कौन मारता है, और कौन मरता है ? क्रिया में तो केवल पद्गल देह, पुद्गल देह को काटता है : तलवार, तलवार को काटती है : फौलाद, फौलाद को काटता है। आत्मा तो अमर है, और पदार्थ अविनाशी है। फिर मरना, मारना, कटना, काटना एक औपचारिक माया मात्र है । हिंसा और अहिंसा का सम्बन्ध बाह्य क्रिया या पदार्थ से नहीं, आत्म-परिणाम से है, आत्म-भाव के कषयन से है । निष्काम और निष्कषाय जो शुद्ध सर्व कल्याण के भाव से तलवार उठाता है, वह निश्चय ही हिंसक नहीं होता। भरत चक्रवर्ती की तलवार और कृष्ण का सुदर्शन चक्र, निश्चय ही अहिंसक थे। क्योंकि उनके पीछे न तो उनके स्वपरिणाम का घात था, और न पर के घात का कषाय था । ऐसा संहार मारक नहीं, तारक ही हो सकता है। वासुदेव कृष्ण ने जिसे मारा, वह तर गया। योगीश्वर भरत ने जिसे मारा, वह पाप से उबर गया। इस विश्व के सकल ऐश्वर्यों को भोग कर भी, वे अभोक्ता और अभुक्त ही रहे। उनके भीतर विशुद्ध सम्यग्दर्शन ही, शुद्ध सम्यकचारित्र्य बन कर प्रकट हुआ था। सम्यक्-चारित्र्य बाहर से धारण करने और पालने की चीज़ नहीं, वह मात्र आत्मा की सम्यक्दर्शन प्रकृति का शुद्ध, स्वाभाविक, उचित परिणाम होता है । तब स्पष्ट है कि निश्चय सम्यक्-दर्शन से ही, लोक-व्यवहार का शुद्ध कल्याण-मार्ग प्रकट होता है। निश्चय है मात्र शुद्ध सम्यक्दर्शन और उसके अनुसार जो शुद्ध आचार है, वहीं शुद्ध व्यवहार-चारित्र्य है । दृष्टि सम्यक्त्व की शुद्धि पर, शुद्ध आत्म-स्वभाव पर रहनी चाहिये। तब व्यवहार अपने आप ही शुद्ध होता है । बीच की और हर कोई योजना अनिवार्यतः मिथ्यात्व होकर रहेगी।' 'और जब तक हमारे बीच नारायण कृष्ण या भरतेश्वर न हों, तब तक क्या हमें आत्म-रक्षा के लिए तलवार उठाने का अधिकार नहीं ?' ___ 'यह अविश्वास क्यों, महाराज, कि आज भी हम में से कोई शुद्ध सम्यग्दर्शन के साथ तलवार नहीं उठा सकता। निष्काम और निष्कषाय हो कर तलवार उठाने का संकल्प हम में क्यों नहीं उठता? इस कायरता में ही यह झलकता है, कि अपनी आत्म-रक्षा की शुद्धता में हमें सन्देह है । हमें अपनी निःस्वार्थता, निष्कामता, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003845
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy