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________________ १९५ के लिए और उसे अपने बीच पाने के लिए सारे आर्यावर्त के जनगण तरस रहे हैं। गणतन्त्र के योग्य बेटे की इससे बड़ी पहचान और क्या हो सकती है ? ' 'लोक ने मुझे अपनाया । मेरा होना कृतार्थ हुआ ।' 'अब समय आ गया है, कि जनगण के छत्रधारी बनो तुम । वैशाली की मंगलपुष्करिणी तुम्हारे राज्याभिषेक की प्रतीक्षा में है ।' .' वही मंगल- पुष्करिणी, तात, जहाँ मुक्त जल तत्व बन्दी है ? और राज्य यदि मेरा कोई हो, तो उसे मैं वैशाली तक सीमित नहीं देख पाता । लगता है कि, मेरा राज्य असीम का ही हो सकता है। और ऐसा राजा यदि मैं हूँ, तो मंगल-पुष्णकरिणी का क़ैदी जल नहीं, आकाश से बरसती हुई मुक्त वृष्टिधाराएँ ही मेरा राज्याभिषेक कर सकती हैं ।' 'साधु-साधु वर्द्धमान ! सचमुच, हम तुम्हारे उसी साम्राज्य का सपना देख रहे हैं। मंगल-पुष्करिणी तुम्हारे चरणों का प्रक्षालन कर, अभयदान पाना `चाहती है। उसे अपने मुक्तिदाता की प्रतीक्षा है ।' 'जल-तत्व अपने स्वभाव से ही स्वतंत्र है; मेरे चरण-प्रक्षालन पर उसका स्वातंत्र्य निर्भर नहीं । उसे मैं सर पर ही धारण कर सकता हूँ। क्या ताले और पहरे में रख कर, आप सोचते हैं, आप उसकी रक्षा कर सकते हैं ? ' 'पुष्करिणी हमारे पूर्वजों के अंग-स्पर्श से पावन है । उसमें राज्याभिषेक प्राप्त कर, हमारे वंशधर अपनी देह में, अपनी परम्परा की रक्तधारा को अटूट अनुभव करते हैं। उसकी रक्षा ." 'उसकी रक्षा, आपके और मेरे वश की नहीं, तात ! अपनी रक्षा करने में वह आप समर्थ है । उसकी पवित्रता, आपके और मेरे पूर्वजों के अंग- स्पर्श और राज्याभिषेक की कायल नहीं। जल अपने निज रूप में ही पवित्र है । आपके परकोटों, फ़ौलादों, पहरों और तालों को तोड़ कर बंधुल मल्ल अपनी प्रिया मल्लिका को उसमें नहला गया। क्या आप का तमाम इन्तज़ाम भी उसकी रक्षा कर सका ?' . गणाधिपति का चेहरा तमतमा आया । 'वह बलात्कारी था । '' 'हमने उसे बलात्कारी होने को विवश किया, महाराज । क्योंकि उससे पहले हम जल-तत्व के बलात्कारी थे । असत्य और हिंसा के इस दुवृत्त में, किसे अपराधी कहें और किसे नहीं ? मुझे तो ऐसा लगा कि बन्धुल की वज्रभेदी तलवार और Jain Educationa International 'अत्याचारी ! इसी से तो For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003845
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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