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के सार्थवाहों के जहाज़ लाल सागर और नील नदी को पार करते हुए भूमध्य सागर तक पहुंच जाते हैं। पूर्वीय और पश्चिमी गोलार्द्ध की अकल्प्य और रहस्य भरी खनिज, भूमिज और जलज सम्पत्तियों का आदान-प्रदान इसी महा जलपथ से होता है । सिन्धु सौवीर और भरुकच्छ के समुद्र तोरणों पर पारस्य, मिस्र, बाबुल और सुदूर एथेंस नक की प्रजाओं और पदार्थ-सम्पत्तियों का संगम होता है । गान्धार में पूर्व और पश्चिम की रक्तधाराएं और संस्कृतियाँ आलिंगित होती हैं । अवन्ती के पण्यों और चतुष्पथों से गुज़र कर, आदान-प्रदान की यह धारा व्यापारिक सार्थवाहों के जरिये कौशाम्बी से गंगा-यमना को पार करती हई, चम्पा के नदी घाटों से टकराती है। चम्पा से पूर्वीय समुद्र को पार कर, सुवर्ण द्वीपों और महाचीन तक व्यापारी श्रेष्ठियों का यह महासाम्राज्य फैला हुआ है।
मनष्य के आन्तर साम्राज्य को विस्तारित करने वाली विद्याएँ, कलाएं, संस्कृतियों और धर्म इन सार्थवाहों के हाथों में खेलते हैं ! . . . .. इन व्यावसायिक महापथों और उन पर चलने वाले सार्थों पर ही, आर्यावर्त के इन तमाम महाराज्यों और गणराज्यों की चतुरंग-चौपड़ बिछी हुई है। कामिनी और कांचन के कुटिल ताने-बानों से यह चौपड़ नितनई बुनी और उधेड़ी जा रही है । मेरी पाँच राजेश्वरी मौसियाँ इस चौपड़ के केन्द्र में बैठी हुई हैं । आज वेद-वेदांग, धर्म, यज्ञ, अग्निहोत्र, ब्रह्मज्ञान, तीर्थंकर, सारे बाहुबल, विक्रम, प्रताप, प्रेम-प्रणय, कनाएँ, विद्याएँ इस कामिनी-कांचन की महा-चतुरंग-चौपड़ के मुहरे बने हुए हैं।
___ . . और जैसे मेरे सामने खड़ी एक चुनौती, भूमध्य सागर की तरंग-चूड़ा पर से ललकार रही है। कि जम्बूद्वीप की इस चौपड़ पर मुझे भी अपनी कोई मौलिक चाल चलनी है। - ‘चलूंगा, निश्चय चलूंगा एक अपूर्व चाल । लेकिन ' . 'लेकिन ' . · · · उससे पहले क्या इस बाजी को उलट देना होगा. . .
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