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________________ ९८ 'महाराज, महावीर प्रस्तुत है !" एक हलकी गुर्राहट के साथ उसने गर्दन डुला कर, अपनी स्वीकृति प्रकट की। मैंने आगे बढ़ कर अपना दायाँ हाथ उसकी लपलपाती जिव्हा पर ढाल दिया | वह चिहुक कर उसे चाटने दुलराने लगा। मैंने उसके मस्तक पर हाथ रक्खा, और उसकी आँखों की ज्वालाओं में गहरे झाँका । अग्नियों के भीतर अग्नियाँ - अपार अग्नियों का वन । कि सहसा ही वह मेरे चरणों में लोट गया, और मेरी पगतलियों के किनारों को चूमने - सहलाने लगा मैंने झुक कर उसके माथे को चूमना चाहा । कि जाने कब उसने अपने दोनों पंजों में मुझे दबा कर बहुत ऊपर, ऊपर उठा दिया । और फिर हवा में उछाल कर अपनी पीठ कर झेल लिया । ' उस काले-सिन्दूरी अष्टापद की प्रलम्ब पर्वताकार देहयष्टि पर मैंने अपने hi आरोहण करते देखा । विन्ध्या की श्रृंगमाला पर छलाँग भरते उस अष्टापद पर मैं सवार था : आरूढ़ था । चारों ओर अफाट, विराट् प्रकृति-सृष्टि फैली पड़ी थी । मेरे परवर्ती पूर्वाचल पर सूर्य अपने रक्ताभ मभामंडल के साथ उद्भासित थे । वे मेरे मस्तक पर मानो किरीट से उतरते चले आ रहे थे । फिर व्याघ्रराज पहाड़ के ढालों और कई अदृश्य, अगम गुफाओं और अरण्यों में से मुझे गुजारते हुए नीचे उतार लाये । सामने जहाँ, उस टीलेनुमा चट्टान पर मैं सोया था, वहीं कल संध्यावाली वह दुर्दम्य भील कन्या खड़ी थी। सवेरे की मुदुल धूप में उसके अंगों की कृष्ण बहिरता, बहुत नीलाभ, ताजा नील कमलों-सी लग रही थी । 'तुम्हारे वीर्य को मैंने जाना, देवार्य । असह्य है तुम्हारा तेज ! 1 'तुमने मुझे जीत लिया, जान लिया, देख लिया । मेरे रोम-रोम में तुम रमण कर गये । ." ' और तुम्हारे रूप की आरसी में, मैंने अपने सौन्दर्य और प्रताप की निःसीमता " को पहली बार समग्र देखा, बाले ! एक छलांग में मुझ सहित अष्टापद मेरे पहुँच गया, जहाँ वह कृष्णा खड़ी थी। मैंने खड़ी उस बाला के विपुल और मुक्त चिकुर सहलाते हुए कहा : रात्रि - शयन वाली उस शिला पर उसकी पीठ से उतर कर, सम्मुख जाल को अपने दोनों हाथों से Jain Educationa International 'काली, समझ गया । हर बसन्त की मंजरियों से महकती भोर में, ite की डाक में, तुम्हीं चिर काल से पुकार रही हो । प्राण पागल हो कर जब For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003845
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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