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10 जनवरी 2011 जिनवाणी 50
प्रवचन
गुरु की महिमा अपरम्पार साध्वीप्रमुखा श्री मैनासुन्दरी जी म.सा.
शासनप्रभाविका महासती श्री मैनासुन्दरी जी महाराज ने गुरु की महिमा को जैन एवं जैनेतर दोनों दृष्टियों से प्रस्तुत किया है। महासती जी की शैली सहज, सरल एवं हृदयग्राही है।-सम्पादक।
सतगुरु की महिमा अनन्त, अनन्त किया उपकार ।
लोचन अनन्त उधारिया, अनन्त दिखावन हार।। अर्थात् गुरु की महिमा का पारावार नहीं है। गुरु श्रमण संस्कृति के अमर गायक हैं। जैन संस्कृति के महान् उन्नायक हैं। गुरु ही घर-घर एवं जन-जन में सामायिक-स्वाध्याय के अमर सन्देश वाहक हैं। गुरु का क्या परिचय दिया जाय कोई शब्द नहीं है । नभोमंडल में उदय होने वाले सूर्य का परिचय उसका प्रकाश है। सुन्दर बगीचे में खिलने वाले गुलाब के फूल का परिचय उसकी सुगन्ध व इत्र है। मिश्री का परिचय उसकी मिठास है । ठीक इसी प्रकार गुरु के जीवन में रहे हुए अक्षय गुणों का क्या परिचय दूं, उनके जीवन का त्याग, तप, ध्यान, मौन, स्वाध्याय व साधना ही परिचय है । गुरु के गुणों का किनारा पाना सरल नहीं, कठिन है।
कोई व्यक्ति तराजू में लेकर मेरु पर्वत को तोलना चाहे तो क्या तोल सकता है? कोई बाल चरण से पृथ्वी को नापना चाहता है तो क्या नाप सकता है। क्या कोई विराट् समुद्र को नन्हीं सी अंजलि में भर सकता है, तो कहना होगा, ये सभी कार्य असम्भव है। फिर भी देवादि प्रसंगों से अति कठिन कार्य भी सुलभ हो सकते हैं, पर गुरु के गुणों का अन्त पाना अत्यन्त कठिन है।
गुरु जीवन रूपी ट्रेन का स्टेशन है। ट्रेन को स्टेशन पर किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है। ट्रेन में अगर किसी प्रकार की खराबी है तो वहाँ पर उसे शीघ्र ठीक किया जा सकता है। स्टेशन पर ट्रेन को कोयला मिलता है, पानी मिलता है और मिलती है विश्रान्ति । इसी प्रकार हमारे जीवन रूपी ट्रेन में कहीं मिथ्यात्व की, अज्ञान की, गलतफहमियों की विकृति आ गई है तो गुरु रूपी स्टेशन पर वह शीघ्र ठीक की जा सकती है।
गुरु को हम जीवन रूपी नौका का नाविक कह सकते हैं। जैसे नाविक यात्रियों को सकुशल समुद्र से पार पहुँचाने का कार्य करता है। उसी प्रकार गुरु भी संसार समुद्र से भव्य आत्माओं को शीघ्र पार पहुंचाते हैं। इसीलिए जिज्ञासुओं ने पूछा है- “किं दुर्लभम्?" इस विश्व में दुर्लभ क्या है । तत्त्वज्ञानियों ने उत्तर देते हुए कहा है- “सद्गुरुरस्ति लोके दुर्लभः।” इस विश्व में सद्गुरु का मिलना दुर्लभ है।
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