________________
1461
जिनवाणी
|| 10 जनवरी 2011 || अर्थ नहीं जो नय के बिना हो ।
नस्थि नएहिं विहणं, सुत्तं अत्थो य जिणमये किंचि।
आसज्ज उ सोयारं नय-नय-विसारओ बूया ।। विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार जैन मत में नय के अभाव में कोई कथन नहीं है। एक अपेक्षा से कह दिया कि जगगुरु (नन्दीसूत्र, गाथा 1) अर्थात् सभी भगवान जगत के गुरु हैं फिर (नन्दीसूत्र,गाथा 2) 'गुरु लोगाणं' से भगवान महावीर को गुरु बताया एवं फिर आगे चलकर गुरु को तीन भदों में विभक्त कर दिया- आचार्य, उपाध्याय और साधु गुरु हैं। हम गुरु की बात को लेकर थोड़ा आगे बढ़ने का प्रयास करें।
जो समस्त लोक के गुरु हैं वे अरिहन्त भगवन्त हैं। अरिहन्त भगवान भले ही नमस्कार मन्त्र के अन्तर्गत देव पद में सम्मिलित किए गये हैं, पर उनके पास जिन्होंने अज्ञान का नाश किया, सम्यक्त्व बोध को प्राप्त किया उनकी दृष्टि में अरिहन्त ही गुरु हैं। आगम में गौतमादि शिष्य तीर्थंकर के लिए यही बोलते हैं कि वे हमारे धर्माचार्य-धर्मोपदशेक-धर्मगुरु यहाँ पधारे हुए हैं। आनन्द श्रावक हो या कामदेव या अन्य श्रावक की बात करें उन्होंने धर्मोपदेशक-धर्माचार्य-धर्मगुरु का सम्बोधन किया। भगवान महावीर के कई श्रावक थे। आनन्द, कामदेव आदि दश श्रावकों में महाशतक का भी नाम आता है। उनके धर्माचार्य गुरु तीर्थंकर महावीर थे। वह धर्मनिष्ठ था, किन्तु परिवार में विषम परिस्थिति थी। महाशतक के तेरह पत्नियाँ थीं उनमें रेवती ने छः को शस्त्र प्रयोग से और छः को जहर देकर मरवा दिया। रेवती सबसे ज्यादा धनाढ्य थी। राजगृह में अमारि घोषणा थी, हिंसा पर प्रतिबंध था। वह प्रतिदिन पीहर से दो गायों के बछड़ों को कटवा के मंगवाती। उनका मांस खाती और पांचों प्रकार की शराब पीती। महाशतक श्रावक पर्याय में संथारा करके बैठे हुए हैं, रेवती उनके सामने नाचती है, भोगों की याचना करती है, भोग भोगने के लिए कहती है। आनन्द-कामदेव को तीन दिशाओं में पाँच-पाँच सौ योजन का अवधि ज्ञान हुआ तो महाशतक हजार योजन तक देख सके, दुगुना अवधि ज्ञान हुआ। विपरीतता में साधक को दुगुना फायदा है।
महाशतक ने रेवती का क्या होगा, उपयोग लगाया कि वह सात दिन बाद पहली नरक में जाने वाली है। रेवती गाय का मांस खा रही है, शराब पी रही है और वह महाशतक को भोगों को भोगने हेतु आमन्त्रित कह रही है। महाशतक संथारे की साधना में हैं फिर भी रेवती के अपराध पर क्षोभ आ गया। महाशतक ने अवधिज्ञान में देखा कि यह मर कर नरक में जाने वाली है। महाशतक ने कह दिया- तू क्या कर रही है? तू सातवें दिन मरकर पहली नरक में जाने वाली है। वीतराग भगवन्त कहते हैं- क्रोध के वश में बोला गया सत्य भी असत्य है। भगवान कहते हैं- ऐसा बोलना नहीं कल्पता। भगवान ने इन्द्रभूति गौतम को बुलाकर कहा- श्रावक महाशतक चूक गया। भगवान वीतरागी हैं, केवली हैं, केवलज्ञान में
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org