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जिनवाणी
| 10 जनवरी 2011 22. नीचाद्वार,
23. अन्धकार, 24. घृणित कुल (निशीथ में भी) 25. परिसाडिय,
26. बरसते पानी, धुंअर,मच्छर, पतंग अधिक उड़ने, आँधी, 27. वेश्या-निवास के निकट भिक्षार्थ जाना। निशीथ सूत्रांतर्गत नामः1. नीच कुल,
2. वर्जित घर, 3. अविश्वसनीय घर 4. पुकारना,
5. पासत्थभक्त, 6. अटवी भक्त 7. घृणित कुल (दशवै.में भी), 8. अग्रपिण्ड, 9. सागारिक निश्राय 10. अन्य तीर्थिक भक्त, 11. अखण्ड 3. भगवती सूत्रांतर्गत नामः1. क्षेत्रातिक्रान्त, 2. कालातिक्रान्त, 3. मार्गातिक्रान्त, 4. प्रमाणातिक्रान्त 5. कन्तार भक्त, 6. दुर्भिक्ष भक्त, 7. बद्दली भक्त, 8. ग्लान भक्त 4. आचारांग सूत्रांतर्गत समाविष्ट नामः1. संखड़ी,
2. अन्तरायक, 3. फुमेज्ज, वीएज्ज। 5. प्रश्नव्याकरण सूत्रांतर्गत नामः1. रइयग, 2. पर्यवजात, 3. मौखर्य, 4. स्वयं ग्रहण, 5. रक्खणा, 6. सासणा, 7. निन्दना, 8. तर्जना, 9.गारव, 10. मित्रता, 11. प्रार्थना, 12. सेवा, 13. करुणा। 6. उत्तराध्ययन सूत्रांतर्गत समाविष्ट दोषः- (1) ज्ञाति पिण्ड 7. ठाणांग सूत्रांतर्गत दोषों के नामः- (1) पाहुण भक्त
इस प्रकार के और भी कई प्रकार के निषेधक नियम आगमों में हैं। उपर्युक्त नियमों को भावपूर्वक उपयोग सहित पालने वाले, श्रद्धेय श्रमण-श्रमणी वर्ग का जीवन उच्चकोटि का और पवित्र होता है। शासनेश प्रभु महावीर ने निर्ग्रन्थ मुनिराजों को निम्नांकित पाँच प्रकार का आहार ग्रहण कर, साधना को उत्कृष्ट बनाने की प्रेरणा प्रदान की है:1. अरसाहार, 2. विरसाहार, 3. अन्ताहार, 4. प्रान्ताहार और 5. रुक्षाहार। एषणीय अन्य वस्तुएँ:
श्रमण-जीवन में आहार, पानी और स्थान के अतिरिक्त अन्य वस्तुएँ भी उपयोगी होती हैं जो सद्गृहस्थों के घरों से प्राप्त की जाती हैं, यथाः- 1. रजोहरण, 2. मुख-वस्त्रिका, 3. चोल पट्टक, 4. पात्र, 5. वस्त्र, 6. आसन, 7. कम्बल, 8. पाद पोंछन, 9. शय्या, 10. संस्तारक, 11. पीठ, 12. फलक, 13. पात्र बंध, 14. पात्र स्थापन, 15. पात्र केसरिका, 16. पटल, 17. रजस्त्राण, 18.
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