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________________ 389 || 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी समय उपर्युक्त दोषों को नहीं लगने देने का ध्यान रखे। उत्पादन के 16 दोषः निम्नलिखित सोलह दोष साधु के द्वारा लगाये जाते हैं। ये दोष निशीथ सूत्र के 13 वें उद्देशक में लिखे हैं, और कुछ अन्यत्र भी कहीं-कहीं मिलते हैं। 1. धात्री कर्म- बच्चे की सार सँभाल करके आहार प्राप्त करना। 2. दूति कर्म- एक का सन्देश दूसरे को पहुँचा कर आहार लेना। 3. निमित्त- भूत, भविष्य और वर्तमान के शुभाशुभ निमित्त बताकर आहार लेना। 4. आजीव- अपनी जाति अथवा कुल आदि बताकर लेना। 5. वनीपक- दीनता प्रकट करके लेना। 6. चिकित्सा- औषधि देकर अथवा बताकर लेना। 7. क्रोध- क्रोध कर अथवा शाप का भय दिखाकर लेना। 8. मान- अभिमान पूर्वक अपना प्रभाव बताकर लेना। 9. माया- कपट का सेवन अथवा वंचना करके लेना। 10. लोभ- लोलुपता से अच्छी वस्तु अधिक लेना। 11. पूर्व-पश्चात् संस्तव- आहार लेने के पूर्व एवं बाद में दाता की प्रशंसा करना। 12. विद्या- चमत्कारिक विद्या का प्रयोग अथवा विद्यादेवी की साधना के प्रयोग से वस्तु प्राप्त करना। 13. मन्त्र- मंत्र प्रयोग से आश्चर्य उत्पन्न करके लेना। 14. चूर्ण- चमत्कारिक चूर्ण का प्रयोग करके लेना। 15. योग- योग का चमत्कार अथवा सिद्धियां बताकर लेना। 16. मलकर्म- गर्भ स्तंभन, गर्भाधान, गर्भपात जैसी पापकारी औषधि बताकर लेना। (प्र.व्या. 1.2 तथा 2.1) ये सोलह दोष साधु से लगते हैं। ऐसे दोषों के सेवन करने वाले का संयम सुरक्षित नहीं रहता। सुसाधु इन दोषों से दूर ही रहते हैं। उद्गम और उत्पादन के कुल बत्तीस दोषों का समावेश गवेषणा' में होता है। (2) ग्रहणैषणा- ग्रहणैषणा का अर्थ निर्दोष आहारादि ग्रहण करना है। इसके अन्तर्गत साधक को अपने जीवन-निर्वाह हेतु आवश्यक वस्त्र, पात्र, शय्या एवं आहार-पानी को ग्रहण करते हुए यतना एवं अहिंसा का विवेक रखना होता है। निम्नांकित दस दोष साधु और गृहस्थ दोनों में लगते हैं- ये 'ग्रहणैषणा' के दोष हैं। इन दोषों को टालकर साधु वस्तु ग्रहण करें। 1. शंकित- दोष की शंका होने पर लेना (दशवै. 5.1.44, आचा. 2.10.2) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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