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________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 3671 सीतोदा नामक नदियों के प्रवाह में स्थित ह्रद के समान बताया है जिसमें से जल प्रवाह निकलता भी है और मिलता है। इसी भांति आचार्यों में दान और आदान दोनों हैं। वे शास्त्रज्ञान एवं आचार का उपदेश देते भी हैं तथा स्वयं भी ग्रहण एवं आचरण करते हैं। इस प्रकार वे 'तिन्नाणं' भी हैं और 'तारयाणं' भी। सुधर्मा स्वामी से लेकर आज तक परम्परागत रूप से आचार्य प्रभुवीर की जन-कल्याण हेतु दी गई जिनवाणी को ही नगर-डगर जन-जन तक पहुँचा रहे हैं। ऐसे में आचार्यों की राह पर चलना तो प्रभु महावीर की राह पर चलने के समान है। कुशल नेतृत्वकर्ता आचार्य वह मजबूत धुरी है, जिसके सहारे चतुर्विध संघरूप चक्र घूमता हुआ प्रगति करता है। अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल चरण बढ़ाता है। आचार्य महाराज के 36 गुण ___ ज्ञानीजनों ने आचार्य के 36 गुण प्ररूपित किए हैं, इनमें जितने गुण उत्कृष्ट होते हैं उतना ही आचार्य धर्म-प्रभावक होता है, यथा1. जाति सम्पन्न 2. कुल सम्पन्न 3. बल सम्पन्न 4. रूप सम्पन्न 5. विनय सम्पन्न 6. ज्ञान सम्पन्न 7. शुद्ध श्रद्धा सम्पन्न 8. निर्मल चारित्र 9. लज्जाशील 10. लाघव सम्पन्न 11. ओजस्वी 12. तेजस्वी 13. वर्चस्वी 14. यशस्वी 15. जित क्रोध 16. जित मान 17. जित माया 18. जित लोभ 19. जितेन्द्रिय 20. जित निंदा 21. जित परीषह 22. जीविताशा मरण भय विप्रमुक्त । 23. व्रत प्रधान 24. गुण प्रधान 25. करण प्रधान 26. चरण प्रधान 27. निग्रह प्रधान 28. निश्चय प्रधान 29. विद्या प्रधान 30. मंत्र प्रधान 31. वेद प्रधान 32. ब्रह्म प्रधान 33. नय प्रधान 34. नियम प्रधान 35. सत्य प्रधान 36. शौच प्रधान _अन्य विवक्षा से भी आचार्य भगवन्तों के 36 गुण कहे गए हैं- 5 महाव्रतों का पालन, 5 आचारों का पालन, 5 इन्द्रियों का संवर, 4 कषाय का त्याग, नववाड़ सहित शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन, 5 समिति, 3 गुप्ति (अष्ट प्रवचन माता का आराधन-पालन) इन 36 गुणों से पूर्ण होते हैं। आचार्यों के प्रति शिष्यों का विनय-व्यवहार गण और गणी के प्रति योग्य शिष्य के प्रमुख कर्त्तव्य दशाश्रुतस्कन्ध की चौथी दशा में बताए गए हैं, यथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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