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________________ 10 जनवरी 2011 उत्तरः प्रश्न: उत्तर: प्रश्न: उत्तर: जिनवाणी 351 जो विषयों में अनासक्त होते हैं तथा मृत्यु से निर्भय रहते हैं, वे ज्ञानी पंडित मरण से मरते हैं। चूंकि पंडित मरण में संयमी का चित्त समाधियुक्त होता है अर्थात् संयमी के चित्त में स्थिरता एवं समभाव की विद्यमानता होती है अतः पंडित मरण को समाधिमरण भी कहते हैं । Jain Educationa International भिक्षु किन परिस्थतियों में समाधिमरण ग्रहण करे ? जब भिक्षु को यह प्रतीति हो जाय कि मेरा शरीर तप आदि कारणों से अत्यन्त कृश हो गया है अथवा रोग आदि कारणों से अत्यन्त दुर्बल हो गया है अथवा अन्य किसी आकस्मिक कारण से मृत्यु समीप आ गई है एवं संयम का निर्वाह असंभव हो गया है, तब वह क्रमशः आहार संकोच करता हुआ कषाय को कृश करे, शरीर को समाहित करे एवं शांत चित्त में शरीर का परित्याग करे। इसी का नाम समाधिमरण या पंडितमरण है। इसे संलेखना भी कहते हैं। संलेखना में निर्जीव एकान्त स्थान में तृणशय्या बिछाकर आहारादि का परित्याग किया जाता है अतः इसे संथारा भी कहते हैं। जैन दर्शन में बताए गए पाँच प्रकार के संयम ( चारित्र) में सभी प्रकार के चारित्र की आराधना वर्तमान में सम्भव क्यों नहीं है? जैन दर्शन में संयम (चारित्र) के पाँच प्रकार बतलाए गए हैं- ( 1 ) सामायिक, (2) छेदोपस्थापनिक, (3) परिहारविशुद्धि, (4) सूक्ष्मसम्पराय, (5) यथाख्यात। इन पाँचों प्रकार के संयमों में वर्तमान में केवल दो चारित्र की आराधना मानी गई है। बाकी के चारित्र की आराधना के लिए विशेष संहनन, सामर्थ्य व धैर्य की आवश्यकता होती है। -89, Audiappa Naicken Street, Sowcarpet, Chennai-600079(T.N.) For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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