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________________ 33 | 10 जनवरी 2011 | | जिनवाणी लिया। जितने अजेय महारथी थे सबकी मृत्यु का रहस्य प्राप्त कर लिया तो विजय की बाधाएँ अपने आप दूर हो गयीं। ___ महाभारत का यह प्रसंग गुरुजनों से आशीर्वाद और अज्ञेय रहस्य प्राप्त करने का रहस्य खोलता है कि शिष्य की नम्रता और श्रद्धा भावना पर प्रसन्न होकर गुरु उसे ज्ञान का गूढ़तम रहस्य बता देते हैं । यहाँ तक कि अपनी मृत्यु का रहस्य भी बता देते हैं। गुरु-शिष्य में एक अनूठा समर्पण व स्नेह का भाव होता है- विश्वास और निष्ठा का एक सूत्र जुड़ा होता है, जो गुरु को विवश कर देता है शिष्य को सब कुछ सौंप देने के लिए। जैसे एक विशाल सरोवर सदा जल से भरा रहता है। जब छोटे तालाब को एक नाली के द्वारा उस विशाल सरोवर से जोड़ दिया जाता है तो वह छोटा-सा तालाब भी पानी का अक्षय भण्डार बन जाता है और जब तक बड़े सरोवर में पानी रहता है, छोटा तालाब भी नहीं सूखता । जैसे बिजलीघर (पावर हाउस) से घर की बिजली का कनेक्शन हो जाता है तो पावर हाउस की बिजली घर को, मिल को, कारखानों को बराबर मिलती है। प्रकाश और ऊर्जा का सम्बन्ध जुड़ा रहता है। बिजलीघर बराबर अपनी बिजली सप्लाई करता रहता है। गुरु भी महासरोवर और बिजलीघर की भाँति शिष्य की आत्मा के साथ आत्मा का सम्बन्ध जुड़ जाने पर अपनी शक्ति, अपना ज्ञान, अपनी साधना का रहस्य सब कुछ शिष्य को प्रदान कर देता है। आवश्यकता है गुरुजनों का विनय करके, उनके प्रति एकनिष्ठ समर्पण करके उनसे सद्बोध प्राप्त किया जाये । समर्पण के बिना प्राप्ति नहीं होती। विनय के बिना विद्या नहीं मिलती। इसलिए गुरु-शिष्य के सम्बन्धों में सदा ही विनय, श्रद्धा, समर्पण और सदिच्छा का सूत्र जुड़ा रहना चाहिए। तभी गुरु शिष्य को अपना ज्ञान और अपनी शक्ति देकर उसे अपने से भी महान् बनाने में सब कुछ लुटा देते हैं। -“अमृत-पुरुष' ग्रन्थ सन-2002 से संकलित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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