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________________ 1296 जिनवाणी || 10 जनवरी 2011 || अहंकार एवं दीनता का भाव न रखकर सम भाव से रहे। 5. क्रियाओं के आधार पर- श्रमण द्वारा की गई क्रियाओं के आधार पर नियुक्तिकार कहते हैं पव्वइए अणगारे, पासंडे चरग तावसे भिक्खू। परिवाई ए य समणे, निग्गंथे संजए मुत्ते। तिन्ने ताई ढविष्ट, मुणीय खंते य दन्त विरए य। लूहे तीरढेऽविय हवंति समणस्स नामाई।' अर्थात् वही श्रमण निम्नांकित नामों से भी अभिहित होता है1. तापस- तप करने पर तापस कहलाता है। 2. भिक्षु- भिक्षा का आचरण करने पर अथवा आठ कर्म का भेदन करने के लिए उद्यत भिक्षु संज्ञा से अभिहित होता है। 3. परिव्राजक- चारों ओर से पाप की वर्जना करने पर परिव्राजक कहा जाता है। 4, श्रमण- श्रम सहन करने पर वह श्रमण है। 5. निर्ग्रन्थ- बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह ग्रन्थि से निर्गत होने पर निर्ग्रन्थ कहलाता है। 6. संग्रत- अहिंसादि में यतना पूर्वक उद्यम करने पर उसे संयत कहते हैं। 7. मुक्त- बाह्य और आभ्यन्तर ग्रन्थि से मुक्त होने पर मुक्त संज्ञा वाला होता है। 8. तीर्ण- संसार समुद्र पार करने वाला है इसलिए वह तीर्ण है। 9. त्राता- धर्मकथा आदि सुनाकर जन सामान्य को दुःखों से बचाता है, अतः त्राता है। • 10. द्रव्य-राग-द्वेष आदि भावों से रहित होने के कारण अथवा ज्ञानादि को प्राप्त करने के कारण द्रव्य 11. क्षान्त- क्रोध को जीत कर क्षमा भाव रखने पर वह शान्त होता है। 12. दान्त- विषयों में अपनी इन्द्रियों का दमन करने पर दान्त कहलाता है। 13. विरत- प्राणातिपात आदि पापों से निवृत्त रहने पर विरत कहा जाता है। 14. रुक्ष- सगे-सम्बन्धियों और मित्रों के स्नेह का त्याग करने के कारण वह रुक्ष है। 15. तीरार्थी- संसार सागर को पार करने की इच्छा वाला अथवा सम्यक्त्व आदि उत्तम गुणों को प्राप्त करने के लिए संसार का परिमाण (हद) बांधने वाला वह तीरार्थी है। 6. उपमाओं के आधार पर- सांप, गिरि, सागर, तरुगण आदि अनेक उपमाओं से श्रमण की तुलना करते हुए नियुक्तिकार कहते हैं उरग गिरि जलण सागर, नहयल तरूगण समोय जो होई। अमर-मिग-धरणि-जलरुह-रवि- पवणसमो जओ समणो।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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