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________________ जिनवाणी काम! जानामि ते रूपं, संकल्पात् किल जायसे । न त्वां सङ्कल्पयिष्यामि ततो मे न भविष्यसि ॥' काम! मैं तुझे जानता हूँ। तू संकल्प से पैदा होता है। मैं तेरा संकल्प ही नहीं करूँगा। तू मेरे मन में उत्पन्न ही नहीं हो सकेगा । 272 10 जनवरी 2011 श्रमण के लिए काम-निवारण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए मुनि शय्यंभव कहते हैंकहं नु कुज्जी सामण्णं, जो कामे न निवारए । पर पर विसीयंतो, संकप्पस्स वसं गओ ।" वह श्रामण्य का पालन कैसे करेगा, जो काम (विषय-राग ) का निवारण नहीं करता, जो संकल्प के वशीभूत होकर पग-पग पर विषादग्रस्त होता है। उपर्युक्त गाथा को स्पष्ट करते हुए नियुक्तिकार ने काम के भेद-प्रभेद की विस्तृत चर्चा की है। जिसके अन्तर्गत काम के दो प्रकार बताए हैं- द्रव्य काम और भाव काम ।' जो मोह के उदय के हेतु भूत द्रव्य हैं- जिनके सेवन से शब्दादि विषय उत्पन्न होते हैं, वे द्रव्य-काम हैं। भाव काम दो तरह के हैंइच्छा - काम और मदन- काम। " अभिलाषारूप काम को 'इच्छा-काम' तथा वेदजनित को 'मदन काम' कहते हैं। श्रमणत्व पालन में सभी प्रकार के काम के निवारण की आवश्यकता होती है। क्षुधा, तृषा, सर्दी, गर्मी, डांस, मच्छर, वस्त्र की कमी, अलाभ- आहारादि का न मिलना, शय्या का अभाव- ऐसे परीषह साधु को होते ही रहते हैं । आक्रोश- कठोर वचन कहे जाने, तृण-स्पर्श की वेदना, उग्र विहार और मैल की असह्यता, एकान्तवास के भय, सत्कार - पुरस्कार की भावना, प्रज्ञा के न होने से हीन भावना से उत्पन्न हुई ग्लानि आदि अनेक स्थल हैं- जहाँ मनुष्य विचलित हो जाता है। परीषह, उपसर्ग और वेदना के समय आचार का भंग कर देना, खेद खिन्न हो जाना, 'इससे तो पुनः गृहवास में चला जाना अच्छा' ऐसा सोचना, अनुताप करना, इन्द्रियों के विषय में फँस जाना, कषाय ( क्रोध, मान, माया, लोभ) कर बैठना, इसे विषादग्रस्त होना कहते हैं। संयम और धर्म के प्रति अरुचि की भावना को उत्पन्न होने देना विषाद है।" पग-पग पर विषादग्रस्त होने के सम्बन्ध में जिनदास महत्तर चूर्णि और हरिभ्रद सूरि की टीका में निम्नलिखित कथा प्राप्त होती है- एक वृद्ध पुरुष पुत्र सहित प्रव्रजित हुआ । चेला वृद्ध साधु को अव इष्ट था। एक बार दुःख प्रकट करते हुए वह कहने लगा- बिना जूते के चला नहीं जाता। अनुकम्पावश वृद्ध ने उसे जूतों की छूट दी। तब चेला बोला- ऊपर का तला ठण्ड से फटता है । वृद्ध ने मोजे करा दिए। तब कहने लगा-" सिर अत्यन्त जलने लगता है।” वृद्ध ने सिर ढंकने के वस्त्र की आज्ञा दी। तब बोलाभिक्षा के लिए नहीं घूमा जाता । वृद्ध ने वहीं उसे भोजन ला कर देना शुरु किया। फिर बोला- भूमि पर नहीं सोया जाता। वृद्ध ने बिछौने की आज्ञा दी । फिर बोला - " लोच करना नहीं बनता । वृद्ध ने क्षुर को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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