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10 जनवरी 2011 जिनवाणी 255
आचार्य हस्ती के श्रमण-जीवन का वैशिष्ट्य
श्री ज्ञानेन्द्र बाफना
__ आचार्य हस्ती इस युग के महान् श्रमण थे, जिनमें श्रमण की आगमोक्त सभी विशेषताएँ विद्यमान थीं। गुरुभक्त श्री बाफना जी ने अपने आलेख में पूज्य आचार्यप्रवर का ऐसा भावपूर्ण सुन्दर रेखाकंन किया है, जो एक सच्चे उत्कृष्ट श्रमण के गुणों से भी हमें परिचित कराता है। विरक्तता, अप्रमत्तता, सरलता, धीरता, अनासक्ति, आचारनिष्ठा, गुरु के प्रति समर्पण, विद्वत्ता, समता, अध्यात्मयोगिता आदि अनेक गुणों का समवाय आचार्य हस्ती को एक महनीय सन्त के रूप में प्रतिष्ठित करता है। -सम्पादक
अनादि काल से अनन्त आत्माएँ कर्म दलिकों का मूलोच्छेद कर शुद्ध, बुद्ध, विमल दशा प्राप्त कर 'मोक्ष' प्राप्त करती रही हैं। जिन-जिन आत्माओं ने मोक्ष प्राप्त किया है वे सभी सामायिक यानी संयम के प्रभाव से ही इस मुकाम को हासिल कर सकी हैं। शासनेश श्रमण भगवान महावीर के ही शब्दों में “जे के वि गया मोक्खं, जे गच्छन्ति, जे गमिस्संति ते सव्व सामाइय पभावेणं' अर्थात् जो भी मोक्ष में गये हैं, जो जाते हैं, जो जायेंगे, वे सभी सामायिक के प्रभाव से। स्वतः सिद्ध है कि नवकार मंत्र का पंचम पद “णमो लोए सव्व साहूणं" पंच परमेष्ठी के शेष सभी पदों का मातृस्थान है। श्रमण जीवन से ही अमरत्व व सिद्धि की यात्रा प्रारम्भ होती है। यह साधना साधक स्वयं अपने श्रम से अपने-अपने पुरुषार्थ से तय करता है, संभवतः इसी बात को पुष्ट करने के लिये चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के साथ 'श्रमण' विशेषण जोड़ा गया है।
आचार्य तीर्थंकर के प्रतिनिधि कहे गये हैं। तीर्थंकरों के अभाव में वे तीर्थंकर के प्रतिरूप समझे जाते हैं। श्रमण संस्कृति के अमरगायक जैन संस्कृति के उन्नायक, जन-जन के आराध्य, लक्षाधिक भक्तों
ग मनीषी आचार्य भगवन्त पूज्य श्री हस्तीमल जी म.सा. के श्रमण जीवन में हम पंच परमेष्ठी के गुणों का दिग्दर्शन कर सकते हैं। उन्होंने माँ के गर्भ से ही शील सुवास का आस्वादन किया, शिशुवय से ही शिक्षा व संस्कार पाये, अबोध बालवय से ही श्रमणों का छठा व्रत रात्रि भोजन त्याग (चौविहार) स्वीकार किया, दश वर्ष की लघुवय में ही वे अपने महनीय गुरुदेव पूज्यपाद आचार्य श्री शोभा की सन्निधि में 'श्रमण' बन गये, पन्द्रह वर्ष की किशोर वय में महिमामयी रत्नसंघ परम्परा के आचार्य मनोनीत हुए। तरुणाई की कोंपले पूरी फूटे उसके पूर्व में 19 वर्ष 3 माह 20 दिन की वय में ही विधिवत् संघनायक ‘णमो आयरियाणं' के पद पर प्रतिष्ठित हो गए। 71 वर्ष का निर्मल निरतिचार संयम-जीवन व 61 वर्ष
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