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________________ | 186 जिनवाणी || 10 जनवरी 2011 ॥ साधन हैं। आसन, वस्त्र आदि उपकरण अल्पारम्भी हों। वे कोमल, रोएँदार, गुदगुदे एवं रंग बिरंगे न होकर स्वच्छ सादे होने चाहिये। मुँहपत्ती गोटेवाली, कसीदे वाली न हो तथा गंदी, फटी, बेडौल और बिना नाप की भी नहीं होनी चाहिये। इसी तरह माला भी चाँदी की न हो, खुशबूदार चंदन की महक वाली न हो, जिससे मन बहक जाय। कारण कि द्रव्य मन पर बाहर के द्रव्यों का असर जल्दी होता है, अतः सामायिक में द्रव्य शुद्धि पर भी बल दिया है। भगवान महावीर के शासन में घी-तेल-धान्य आदि के व्यापारी, मालाकर, प्रजापति आदि कई जाति के श्रावक साधना करने वाले थे। संसार की वेशभूषा में सामायिक करने पर, चिकने कपड़ों की गंध आने पर साधक का मन व्यापार की ओर जा सकता है, धान्य वाले की जेब में धान रहने पर संघठ्ठा हो सकता है, मालाकार की जेब में फूल रह सकता है, अतः सांसारिक वेश-भूषा हटाकर एकसी सादा वेशभूषा की बात कही गई है। जिससे धार्मिकता की यूनिफार्म नजर आये। जैसे- आरक्षी दल में सेना की, पाठशाला में विद्यार्थी की, चिकित्सालय में चिकित्सक एवं नर्सिंग स्टाफ की, कोर्ट में वकील की वेशभूषा उनकी कार्य पद्धति का स्वरूप दिखाती है। इसी प्रकार साधना-आराधना करने वाले सामायिक के साधक की भी एकसी वेशभूषा गरीबअमीर का, राजा-महाराजा का, सेठ-साहूकार का, ऊँच-नीच का भेद मिटाकर, भक्ति की भावना बढ़ाकर, समता में सहायक होती है। इस वेशभूषा में साधना करने से परिवार के सदस्य, बाहर से आये मेहमान और किसी प्रयोजन से मिलने वाले दूसरे भाई भी आपको वेशभूषा में देख विक्षेप नहीं करेंगे तथा यदि आप साधकों के बीच सामायिक की वेशभूषा में साधना करते हुए निद्राधीन होकर प्रमाद में जाने लगे, उत्तेजना में आकर तेज बोलने लगे अथवा व्यापार या आरम्भ-सम्भारम्भ की बात करने लगे तो साथी-सहयोगी आपको सावचेत कर देंगे। भाईसाहब! अभी आप सामायिक में हैं, क्या कर रहे हैं? क्या बोल रहे हैं, कैसे नींद ले रहे हैं, क्यों प्रमाद कर रहे हैं? इस जागरण में यह द्रव्य वेश भूषा निमित्त बनेगी। ___ द्रव्य शुद्धि भाव शुद्धि का कारण है। सुमुख-दुर्मुख की बात सुनकर भावों से भयंकर युद्ध करने वाले राजर्षि प्रसन्नचन्द्र को मुण्डित मस्तक ने, नरक में जाने वाले अध्यवसायों से हटाकर विशुद्धतम अध्यवसाय में पहुँचा कर केवलज्ञान प्राप्त करा दिया था। रजोहरण और मुखवस्त्रिका के उपकरण देखकर आर्द्रकुमार को अनार्य देश में भी जाति-स्मरण ज्ञान हो गया था। साधु की यही वेशभूषा और चर्या देखकर, राजमहलों में बैठा मृगापुत्र जाति-स्मरण ज्ञान प्राप्त कर साधु बनने को उद्यत हो गया था। द्रव्य-उपकरण विश्वास का कारण है। ऐसा तीर्थंकर भगवान महावीर ने अपनी अन्तिम वाणी उत्तराध्ययन के 23 वें अध्याय की 32 वीं गाथा में केशी गौतम के संवाद में समाधान करते हुए कही-लोगे लिंगपयोयणं।' अर्थात् लोक व्यवहार में व्रत का रक्षण करने के लिये लिंग अर्थात् वेश-भूषा विश्वास का कारण है। सामायिक साधक की इस वेशभूषा को देखकर अन्य धर्मी मुस्लिम आततायी भी साधक को स्थान देते हैं, सम्मान देते हैं, यहाँ तक कि छापा मारने (रेड) निरीक्षण करने आये दल के एवं सी.बी.आई. पुलिस के अधिकारी भी बिना निरीक्षण किये लौट जाते हैं। तीसरी बात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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