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10 जनवरी 2011 जिनवाणी 115
श्रुतज्ञान की प्राप्ति का मूल उपाय : गुरु की उपासना
सुश्री नेहा चोरडिया
मोक्ष-प्राप्ति में श्रुतज्ञान की उपयोगिता असंदिग्ध है एवं श्रुतज्ञान की प्राप्ति में गुरु की आराधना एक प्रमुख आधार है। सुश्री नेहा चोरडिया ने गुरु के प्रति श्रद्धा जागरित करने वाले इस आलेख को 'मुनि तुं जागृत रहेजे' पुस्तक से हिन्दी अनुवाद के रूप में प्रस्तुत किया है। -सम्पादक
सूर्य की किरणें किससे बंधी हुई हैं? इस प्रश्न का जवाब पलभर का विलंब किए बिना हम दे सकते हैं कि वे सूर्य से बंधी हुई हैं। चाँदनी किससे बंधी हुई है? चंद्र से। सुवास किससे बंधा है? पुष्प से। जवाब देने में कोई देर नहीं लगती। बरसात किससे बंधी है? बादल से। वृक्ष किससे बंधे हैं? मूल से। इस जवाब को चुनौती देने की किसी की हिम्मत नहीं। मकान किससे बंधा है? नींव से । इस ज़वाब में किसी का विरोध नहीं है। लेकिन,
अपने अध्यवसायों की निर्मलता श्रुतज्ञान से बंधी है, अपने संयम-जीवन की मस्ती श्रुतज्ञान के आधीन है, अपनी श्रद्धा की निर्मलता का आधार श्रुतज्ञान है, अपनी समाधि के केन्द्र में श्रुतज्ञान है और सभी घातिकर्मों का क्षय होने के बाद उत्पन्न होने वाला केवलज्ञान भी श्रुतज्ञान का आभारी है। वह श्रुतज्ञान किससे बंधा है?
ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से? ज्ञानार्जन के पुरुषार्थ से? ज्ञानार्जन के लिए अपनी आराधना से?
कदाचित् अपनी समझ में नहीं आवे, ऐसा समाधान दिया है ‘विशेषावश्यक भाष्य' नामक ग्रंथ में टीकाकार हेमचन्द्र सूरीश्वर महाराज ने
'श्रुतज्ञानं गुर्वायत्तम्।
श्रुतमवाप्तो मूलोपायः गुर्वाराधना' श्रुतज्ञान बंधा है- गुरुदेव से । श्रुतज्ञान की प्राप्ति का मूल उपाय है-गुरुदेव की आराधना । श्रुतज्ञान के साथ गुरुदेव का क्या संबंध है? श्रुतज्ञान की प्राप्ति में गुरुदेव की आराधना को बीच में लाने
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