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________________ जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 | भया मेरा मन सुख में गोविन्द का गुणगाती । मीना कहै इक आस आपकी औरां सूं सकुचाती।। सन्त वाणी संग्रह, भाग 2, पृ. 69 59. अब मौहि सद्गुरु कहि समझायौ, तौ सौ प्रभू बडै भागनि पायो । रूपचन्द नटु विनवै तौही, अब दयाल पूरौ दे मोही।।- हिन्दी पद संग्रह, पृ. 49 60. वही, पृ. 127, तुलनार्थ देखिये । मनवचनकाय जोग थिर करके त्यागो विषय कषाइ। द्यानत स्वर्ग मोक्ष सुखदाई सतगुरु सीख बताई ।। वही, पृ. 133 61. हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. 117 62. भाई कोई सतगुरु सत कहावै, नैनन अलख लखावै- कबीर; भक्ति काव्य में रहस्यवाद, पृ. 146 63. दरिया संगम साधु की, सहजै पलटै अंग । जैसे संग मजीठ के कपड़ा होय सुरंग ।- दरिया 8, संत वाणी संग्रह, भाग 1, पृ. 129 64. सहजो संगत साध की काग हंस हो जाय । सहजोबाई, वही, पृ. 158 65. कह रैदास मिलें निजदास, जनम जनम के काटे पास- रैदास वानी, पृ. 32 66. तज कुसंग सतसंग बैठ नित, हरि चर्चा गुण लीजौ- सन्तवाणी संग्रह, भाग 2, पृ. 77 67. जलचर थलचर नभचर नाना, जे जड चेतन जीव जहाना । मीत कीरति गति भूति भलाई, जग जेहिं जतन जहां जेहिं पाई। सौ जानव सतसंग प्रभाऊ, लौकहुं वेद न आन उपाऊ । बिनु सतसंग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई। सतसंगति मुद मंगलमूला, सोई फल सिधि सब साधन फूला। सठ सुधरहिं सतसंगति पाई, पारस परस कुधात सुहाई।- तुलसीदास-रामचरितमानस, बालकाण्ड 2-5 68. तजौ मन हरि विमुखन को संग | जिनके संग कुमति उपजत है परत भजन में। 69. बनारसी विलास, भाषा मुक्तावली, पृ. 50 70. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 136 71. वही, पृ. 155 72. वही, पृ. 158-186 73. मन मोदन पंचशती, 147-8, पृ. 70-71 -धर्मपत्नी श्री (डॉ.) भागचन्द जैन 'भास्कर', सदर बाजार, नागपुर (महा.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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