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________________ 109 | 10 जनवरी 2011 ॥ जिनवाणी 35. कबीर ग्रन्थावली, पृ. 1 36. ससै खाया सकल जग, ससा किनहूं न खद्ध, वही, पृ. 2-3 37. वही, पृ. 4 38. जायसी ग्रन्थमाला, पृ. 7 39. गुरु सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा ।।- पद्मावत 40. गुरु होइ आप, कीन्ह उचेला-जायसी ग्रन्थावली, पृ. 33 41. गुरु विरह चिनगी जो मेला । जो सुलगाइ लेइ सो चेला ॥- वही, पृ. 51 42. जायसी ग्रंथावली,स्तुतिखण्ड, पृ. 7 43. जोग विधि मधुबन सिखिहैं जाइ । बिनु गुरु निकट संदेसनि कैसे, अवगाह्यौ जाइ।- सूरसागर (सभा), पद 4328 44. वही, पद 336 45. सूरसागर, पद 416, 417; सूर और उनका साहित्य। 46. परमेसुर से गुरु बड़े गावत वेद पुरान-संतसुधासार, पत्र 182 47. आचार्य क्षितिमोहन सेन-दादू और उनकी धर्मसाधना, पाटल सन्त विशेषांक, भाग 1, पृ. 112 48. बलिहारी गुरु आपणों द्यौ हांड़ी के बार। जिनि मानिषतें देवता, करत न लागी बार ।।- गुरु ग्रंथ साहिब, म 1, आसादीवार, पृ. 1 49. सुन्दरदास ग्रंथावली, प्रथम खण्ड, पृ. 8 50. रामचरितमानस, बालकाण्ड, 1-5 51. गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई जो विरंचि संकर सम होई। बिन गुरु होहि कि ज्ञान ज्ञान कि होइ विराग विनु । रामचरितमानस, उत्तरकाण्ड, 93 52. वही, उत्तरकाण्ड, 4314 53. बनारसीविलास, पंचपद विधान, 1-10, पृ. 162-163 54. हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. 117 55. ज्यौं वरषै वरषा समै, मेघ अखंडित धार । त्यौं सद्गुरु वानी खिरे, जगत जीव हितकार ।।- नाटक समयसार, 6, पृ. 338 56. वही, साध्य साधक द्वार, 15-16, पृ. 342-3 57. बनारसी विलास, भाषासूक्त मुक्तावली, 14, पृ. 24 58. सद्गुरु मिलिया सुंछपिछानौ ऐसा ब्रह्म मैं पाती। सगुरा सूरा अमृत पीवे निगुरा प्यारस जाती। मगन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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