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| 10 जनवरी 2011 ॥
जिनवाणी 35. कबीर ग्रन्थावली, पृ. 1 36. ससै खाया सकल जग, ससा किनहूं न खद्ध, वही, पृ. 2-3 37. वही, पृ. 4 38. जायसी ग्रन्थमाला, पृ. 7 39. गुरु सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा ।।- पद्मावत 40. गुरु होइ आप, कीन्ह उचेला-जायसी ग्रन्थावली, पृ. 33 41. गुरु विरह चिनगी जो मेला । जो सुलगाइ लेइ सो चेला ॥- वही, पृ. 51 42. जायसी ग्रंथावली,स्तुतिखण्ड, पृ. 7 43. जोग विधि मधुबन सिखिहैं जाइ । बिनु गुरु निकट संदेसनि कैसे, अवगाह्यौ जाइ।- सूरसागर (सभा),
पद 4328 44. वही, पद 336 45. सूरसागर, पद 416, 417; सूर और उनका साहित्य। 46. परमेसुर से गुरु बड़े गावत वेद पुरान-संतसुधासार, पत्र 182 47. आचार्य क्षितिमोहन सेन-दादू और उनकी धर्मसाधना, पाटल सन्त विशेषांक, भाग 1, पृ. 112 48. बलिहारी गुरु आपणों द्यौ हांड़ी के बार। जिनि मानिषतें देवता, करत न लागी बार ।।- गुरु ग्रंथ
साहिब, म 1, आसादीवार, पृ. 1 49. सुन्दरदास ग्रंथावली, प्रथम खण्ड, पृ. 8 50. रामचरितमानस, बालकाण्ड, 1-5 51. गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई जो विरंचि संकर सम होई। बिन गुरु होहि कि ज्ञान ज्ञान कि होइ
विराग विनु । रामचरितमानस, उत्तरकाण्ड, 93 52. वही, उत्तरकाण्ड, 4314 53. बनारसीविलास, पंचपद विधान, 1-10, पृ. 162-163 54. हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. 117 55. ज्यौं वरषै वरषा समै, मेघ अखंडित धार । त्यौं सद्गुरु वानी खिरे, जगत जीव हितकार ।।- नाटक
समयसार, 6, पृ. 338 56. वही, साध्य साधक द्वार, 15-16, पृ. 342-3 57. बनारसी विलास, भाषासूक्त मुक्तावली, 14, पृ. 24 58. सद्गुरु मिलिया सुंछपिछानौ ऐसा ब्रह्म मैं पाती। सगुरा सूरा अमृत पीवे निगुरा प्यारस जाती। मगन
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