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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आज न केवल भारत वरन विश्व के अनेक देशों में आचार्य श्री के भक्तगण अपने विभिन्न कार्य-क्षेत्रों में जीविकोपार्जन के साथ ही सामायिक व स्वाध्याय की साधना में रत हैं और प्राचार्य श्री से प्रेरणा लेकर ही अपना जीवन सफल बनाने में संलग्न हैं।
__ आचार्य श्री दृढ़ निश्चयी, आत्म-बलधारी और आश्वासन को पूरा करने वाले थे । जीवन की अन्तिम बेला में शारीरिक दुर्बलता के कारण स्थिरवास हेतु जोधपुर के श्री संघ की विनती पर भी आप जोधपुर न जाकर भंडारी परिवार को दिये आश्वासन को पूरा करने हेतु निमाज पधारे । भविष्यद्रष्टा प्राचार्य श्री ने अपना अन्तिम समय निकट जानकर औषधि न लेकर संलेखना-संथारा की साधना में अपनी देह को लगाया और पंडित मरण प्राप्त किया।
ऐसे महान् योगी, साधक, प्रज्ञापुरुष, तेजस्वी, कर्मठ, भविष्यद्रष्टा, संयमी, साधना के सुमेरु, आध्यात्मिक गुणों के धारक, सौम्य और गंभीर व्यक्तित्व के धनी प्राचार्य श्री के चरणों में शत-शत वंदन ।
-१३२, विद्यानगर, इन्दौर-४५२००१
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अमृत - करण
• समाधि - अवस्था प्राप्त करने के लिए सामायिक व्रत का
अभ्यास आवश्यक है। • आत्म-स्थिरता ही सामायिक की पूर्णता है ।
• आत्मा में जब तक शुद्ध वृत्ति नहीं उत्पन्न होती, शुद्ध
आत्म-कल्याण की कामना नहीं जगती और मन लौकिक एषणाओं से ऊपर नहीं उठ जाता, तब तक शुद्ध सामायिक की प्राप्ति नहीं होती।
-प्राचार्य श्री हस्ती
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