SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक 0 श्री सुनीलकुमार जैन अल्पायु में संयम-पथ के राही बनने वाले एवं युवावस्था में प्राचाय पद को सुशोभित करने वाले, जिनका जीवन वृत्त स्वयं ही युवकों को प्रेरणादायी है, ऐसे आचार्य प्रवर का सान्निध्य जब प्राप्त होता था, तब उनकी स्नेहमयी आँखें जो सन्देश देती थीं, वह कहे जाने वाले हजारों शब्दों एवं कई उपदेशों से अधिक प्रेरणादायी होता था। ऐसा प्रेरक सान्निध्य देने वाले, आचार्य प्रवर हस्तीमल जी महाराज साहब के द्वारा समाज की नई पौध, नन्हे-मुन्ने बच्चों के लालनपालन, हाँ उनके नैतिक, आध्यात्मिक लालन-पालन की दिशा में जो चिंतन सुझाया, वह समय की सर्वाधिक मांग रही। उनके द्वारा बच्चों को संस्कारित करने के लिए एक जेहाद छेड़ा गया। उनके जेहाद का ही परिणाम, बच्चों में एक नई जागृति देखी गई एवं जगह-जगह उनके द्वारा सुझाई गई, स्वाध्यायशालाएँ कार्यरत हैं। आज जबकि नई पीढ़ी के भटकाव की बातें सामने आती हैं। देश में, समाज में युवकों के भटकने की चिन्ता व्याप्त है । हेरोइन, गांजा, चरस, स्मेक के नशे से जूझती युवा पीढ़ी को आचार्य प्रवर के द्वारा स्नेहमयी भाषा में कुव्यसन की समझाइश और बुराइयों से बचने का मार्ग सुझाना एवं बचपन से ही कुव्यसन त्याग की ओर आकृष्ट करना, उनकी बहुमूल्य देन वर्तमान समाज को है। उस समय उनके द्वारा अपनी वाणी से सींचे गये बचपन, युवा के रूप में आज सामने आते हैं, ऐसे विकसित युवा, कुव्यसन से दूर एवं नैतिक चरित्र के बल पर हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं तो सहज ही उनकी देन चहुं ओर प्रकाशमान होती है। परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर हस्तीमलजी म. सा० ने जिन-शासन की प्रभावना की दिशा में अपना हर पल सार्थक किया। उन्होंने जो आह्वान किया था, वह समय की कसौटी पर सार्थक हुआ, पूरा उतरा। उनकी कथनी एवं करनी में कोई भेद नहीं था इसलिए उनका सुझाया पथ हर किसी को सहज श्रेयस्कर लगता था । आचार्य प्रवर द्वारा रचित 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' उनके उपदेशों का सार, उनके अनेक ग्रंथ आज हमारे बीच हैं । उनकी यह देन, अनमोल है । समाज के नैतिक उत्थान के लिए उनके द्वारा कहा गया हर शब्द अनमोल रत्न है। ऐसे 'रत्न' सम्प्रदाय के तेजस्वी आचार्य के द्वारा अपनी संयम-यात्रा के दौरान संचित किये गये अनमोल कणों, मनकों को जब पिरोया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy