________________
• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
आचार्य हस्ती प्रारम्भ से ही शोभाचन्द्र जी महाराज के प्रिय शिष्य रहे । आपकी प्रज्ञा बड़ी प्रखर एवं तत्त्व मनीषा बड़ी ही सूक्ष्म थी। आप दिन-रात तीव्र अध्यवसाय के साथ ज्ञानार्जन में जुटे रहते । गुरु शोभाचन्द्र जी महाराज जैसे कठोर अनुशासन की देखरेख में आप रहे, पर उलाहना भरा एक शब्द भी कभी नहीं मिला। यही आपकी प्राचार-शुद्धि का जीवंत प्रमाण है। बालक होते हुए भी आप स्थिर योगी थे। जाप अपना हर कार्य बड़ी सावधानी तथा मनोयोग से किया करते थे । बहुधा आप इंगित से ही सब समझ जाया करते थे । बाल्यावस्था में ही आपमें यह असाधारण योग्यता थी। आपके जीवन पर शोभा गुरु की जो अमिट छाप पड़ी, वही प्रेरणा-सूत्र बनकर आपको आजीवन प्रेरित करती रही। आप सदा निलिप्त भाव तथा कर्तव्य-बुद्धि से हर कार्य को किया करते थे।
वि० सं० १९८३ की सावण बदी अमावस को आचार्य शोभाचन्द्र जी महाराज का स्वर्गवास हुआ। दैहिक संस्कारों के बाद समूचे संघ ने मिलकर आपसे प्रार्थना की- 'आप प्राचार्य पद पर विराजें'। आपने बिलकुल रूखा सा उत्तर दिया-"पहले पूर्वाचार्य द्वारा लिखा पत्र देखो, किसका नाम है ?" संघ की भक्ति भरी मनुहारें और विनय भरा आग्रह भी आपको नहीं पिघला सका। आखिर पत्र सुनाया गया तभी आपने पद ग्रहण किया। यह थी आपकी पद की अपेक्षा कर्तव्य को ऊँचा मानने की प्रकृति । पद का व्यामोह नहीं, पर कर्तव्य आपके जीवन का अनुपम आदर्श था। प्राचार्य हस्ती के शासन-काल को रत्नवंश का स्वर्णयुग कहा जाता है। इस काल में ज्ञान-साधना, प्रचार-क्षेत्र, स्वाध्यायसंघ, श्रावक समाज आदि प्रत्येक क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि व उन्नति हुई। चादर महोत्सव वि० सं० १९८७, अक्षय तृतीया को सिंहपोल, जोधपुर में हुआ ।
संस्कृत के किसी कवि ने ठीक ही कहा है
'सूतेम्भः कमलानि तत्परिमलं वाता वितन्वन्तियत्' अर्थात् जल तो सिर्फ कमल को पैदा करता है, उसके परिमल को तो पवन ही फैलाता है। प्राचार्य हस्ती के उच्च चारित्र और विद्वत्ता की महिमा भारत ही नहीं अपितु संसार के सभी सभ्य देशों में पहुँच गई थी। बड़े-बड़े विद्वानों ने आपके दर्शन किये तथा आपसे तत्त्व-चर्चाएँ भी की। आखिर सबने यही कहा- "हमें भगवान् महावीर की शुद्ध परम्परा के श्रमणों के दर्शन हुए।"
आपको तात्त्विक बातचीत का बड़ा शौक था। आप वादविवाद नहीं, संवाद पसन्द करते थे। आप अत्यन्त शीतल व मधुर स्वभाव के थे। कैसा भी क्रोधादि का प्रसंग उपस्थित होता, पर आप अपने सौम्य स्वभाव से थोड़े भी
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org