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अपराजेय व्यक्तित्व के धनी
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0 श्री अमरचन्द लोढ़ा
आचार्य श्री हस्तीमल जी म. सा. बड़े प्रभावशाली और पुण्यवान् आचार्य थे। आप हजारों नर-नारियों के आकर्षण के केन्द्र थे। गेहुँमा वर्ण, ठिगना कद, गठा हुआ शरीर, प्रशस्त ललाट और गोल-गोल चमकती वात्सल्य भरी आँखें, यह था उनका प्रभावशाली बाह्य-व्यक्तित्व । आपकी स्पष्टवादिता और उसमें झलकते चारित्र के तेज के सम्मुख प्रत्येक व्यक्ति नतमस्तक हो जाता था। आप जन साधारण के बीच बहुत सादगी और सरलता से प्रात्मीय-भाव का स्रोत बहाते थे । प्राचार्य श्री का प्रभाव इतना तीव्र था कि विरोधी जन भी आपसे अभिभूत हुए बिना नहीं रहते। अापकी पुण्यवत्ता अद्वितीय थी। जो कार्य सैंकड़ों व्यक्तियों के परिश्रम और धन से भी सम्भव नहीं होता, आपकी पुण्यबत्ता से स्वयं ही हो जाया करता था।
आपका जन्म वि० सं० १६६७ की पौष शुक्ला १४ को मारवाड़ में पीपाड़ नगर के बोहरा परिवार में हुआ था। आपके पिताश्री का नाम था श्री केवलचन्द जी बोहरा और माता का नाम था रूपाबाई। जब आप गर्भ में थे तभी आपके पिताश्री का स्वर्गवास हो गया था। माताश्री ने आपको बड़े लाड़-प्यार से पाला-पोषा। कहा जाता है कि आपके परिवारवाले जन्म-समय लिखकर एक वृद्ध अनुभवी ज्योतिषी को दिखलाने को ले गये तो उसने बतलाया कि इस जातक (संतान) के २०वें वर्ष में प्रतापी नरेशों से भी बढ़कर महापुरुष बनने का योग है। माता इसी सुनहली आशा पर अपने पीहर और कभी ससुराल की छाया में बैठकर आशा के दीप संजोती रहती। पूर्व जन्म के संस्कार बीजानुकूल वातावरण पाकर अंकुर रूप में फूटने लगे। खेलकूद, खान-पान आदि के प्रति उतनी आसक्ति जगी ही नहीं थी कि उसे मिटाने की चेष्टा करनी पड़े। माता की धार्मिक वृत्तियाँ, पड़ौस का धर्मानुप्राणित वायुमण्डल और फिर संतजनों का सम्पर्क आपको उत्कृष्ट विरक्ति की ओर मोड़ने में सहायक बना। रत्नवंश के छठे पट्टधर आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी के पास १० वर्ष की वय में माघ शुक्ला द्वितीया को अजमेर नगर में आर्हती दीक्षा स्वीकृत कर आप सर्वारंभ परित्यागी श्रमण बन गये।
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