________________
• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
"मन भुजंग बहु विष भरया, निर्विष क्यूं ही न होई ।
'दादू' मिल्या गुरु गारुडी, निर्विष किन्हा सोई ।।" आप श्री का जीवन अनेकानेक विशेषताओं से अनुरंजित था । ज्ञान साधना द्वारा ज्योतिर्मय बनकर जन-जन को ज्योतिर्मान करने रूप तेजस्विता, अभय बनकर धर्म और संस्कृति के लिये पल-पल आत्म-बलिदान करने रूप निर्भयता, करुण बनकर दीन-दुःखियों का प्रात्म-सम्मान रखते हुए, बात्सल्य सहयोग रूप उदारता आपके महान् व्यक्तित्व का परिचय था। आपका जीवन अध्यात्म भावना से परिसिंचित था । आपके व्यक्तित्व में तेजस्विता, निर्भयता और उदारता की त्रिवेणी प्रवहमान थी।
यूज्य श्री का जीवनगत आचरण सलिल सा तृप्तिदायक था। आपका सामायिक-संदेश मक्खन सा शक्तिदायक था। आपका स्वाध्याय संदेश अमृत सा मुक्तिदायक था।
पूज्य गुरु हस्ती की संयमी मस्ती का, मंगलमय उत्तम जीवन का अन्तिम फलित आदर्श समाधि मरण था । अतीत के लम्बे इतिहास में किसी आचार्य का इस प्रकार जागृति परक सुदीर्घ समाधिमरण की आराधना का प्रसंग सुनने, जानने एवं पढ़ने को नहीं मिला। इस रूप में इस प्रसंग को इतिहास का स्वर्णिम अध्याय कह दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
वैसे तो पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. के समाधिमरण की घटना जहाँ एक ओर भक्त समुदाय के लिये शोक की घटना है वहीं दूसरी ओर श्रमण संस्कृति के लिये गौरव का, साधक वर्ग के लिये प्रेरणा का और अध्यात्म जगत् के लिये मंगल का प्रसंग है।
पूज्य भगवन्त का यह समाधि वरण हमारे अन्दर समाधि की स्मृति को जीवित रखने में परम सहयोगी बनेगा। देवेन्द्र नरेन्द्र से पूजित गुरु गजेन्द्र के महिमा मण्डित व्यक्तित्व को शत-शत, वन्दन-नमन के साथ मैं श्रद्धा-सुमन समर्पित करती हूँ।
"गुरु त्राता, भ्राता गुरु, गुरु माता, गुरु तात । परमेश्वर सम सुगुरु का, नाम रटो दिन-रात ।।"
-गिड़िया भवन,
A-३५, धर्मनारायणजी का हत्था, पावटा, जोधपुर (राज.)
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org