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ऐसे थे हमारे पूज्य गुरुदेव
- श्री श्रीलाल कावड़िया
परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर श्री हस्तीमल जी म. सा. महान् व्यक्तित्व के स्वामी थे। आपने अपने श्रमण-जीवन में अनेक धार्मिक संस्थानों की स्थापना की तथा अनेक महान् ग्रंथों सहित विपुल जैन साहित्य की रचना की । सामायिक एवं स्वाध्याय के तो आप प्रबल प्रेरक थे। अपने दीर्घ साधना-जीवन में अनेक कठिनाइयों का समाधान करते हुए आपने संघ एवं समाज की अथक सेवा की तथा भारत भर में राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडू आदि दक्षिणी राज्यों का भ्रमण करते हुए धर्मप्रेमी जनता को अपने प्रवचन-उद्बोधन से लाभान्वित किया तथा अनेक स्थानों पर स्वाध्याय संघों की स्थापना की।
अपना अंतिम समय निकट जानकर, आचार्य श्री ने अत्यधिक अस्वस्थ होते हए भी औषधि आदि लेना बंद कर दिया। भक्तजन अनेक डॉक्टरों एवं वैद्यों को भी लेकर आए परन्तु प्राचार्य श्री ने कहा कि यह शरीर तो नश्वर है तथा एक दिन जाना ही है और समाधिपूर्वक अपनी साधना में अटल रहे।
निमाज में विराजित सभी संत-सतियों ने प्राचार्य प्रवर की सेवा का लाभ लिया तथा उनकी इच्छानुसार, संलेखना संथारा कराया। समाधियुक्त अवस्था में २१-४-६१ को रात्रि ८ बजे लगभग आचार्य श्री ने नश्वर देह का त्याग कर दिया।
आचार्य श्री के महाप्रयाण से पूर्व तो हजारों-लाखों भक्तों ने निमाज पहुँचकर दर्शन एवं सेवा का लाभ लिया ही था परन्तु उनकी अंतिम यात्रा में तो एक लाख से भी अधिक श्रद्धालुजनों की उपस्थिति अभूतपूर्व थी, जैसे दर्शनार्थियों का सागर उमड़ पड़ा हो। राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भैरोंसिंह शेखावत सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति भी अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु वहाँ उपस्थित थे। आचार्य श्री के अन्तिम काल का सान्निध्य पा निमाज नगर धन्य हो गया एवं तीर्थस्थल बन गया।
मुझे तो बाल्यावस्था से ही आचार्य श्री के सान्निध्य का सुअवसर प्राप्त
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