SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • ५४ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्राचार्य श्री की साहित्य के प्रति रुचि : __ आचार्य श्री का साहित्य के क्षेत्र में भी पूर्ण व अमूल्य योगदान रहा है । उत्तराध्ययन, दशवकालिक, नन्दीसूत्र, अन्तगडसूत्र, प्रश्न-व्याकरण आदि जैनागमों पर आपने टीकाएँ लिखी हैं। "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" के रूप में आपने जैन धर्म का एक तथ्यपूर्ण और प्रामाणिक इतिहास समाज को दिया है । अब तक इसके चार भाग प्रकाशित हुए हैं । इनमें आदि पुरुष भगवान ऋषभदेव से लेकर आज से ५०० वर्षों पूर्व तक का इतिहास है। आपके पूर्व पुण्य कर्मों का संचित उदय और मातु श्री के धार्मिक संस्कार व गर्भस्थ शिशु पर हुए प्रभाव का ही प्रतिफल था कि आप श्री ने ५ वर्ष . की अल्पवय से ही चौविहार करना शुरू कर दिया । आपने अपने जीवन में लगभग एक लाख किलोमीटर की पैदल यात्रा की जो एक महत्त्वपूर्ण बात है। जीवन के अंतिम पांच वर्ष पूर्व तक (७७ वर्ष की वय तक) आपका विहार काफी तेज गति का रहता था । आपके साथ चलने वाले संतगण, भक्तगण जब विहार में होते तो आप काफी आगे निकल पड़ते थे और भक्तगण काफी पीछे रह जाते थे। आप बाहर से जितने सुन्दर थे, नयनाभिराम थे उससे भी अधिक मनोभिराम अन्दर से थे । आपकी मंजुल मुखाकृति पर निष्कपट विचारकता व दृढ़ता की भव्य आभा बरसती थी और आपकी उदार आँखों के भीतर से बालक के समान सरल सहज स्नेहसुधा झलकती थी । जब भी देखते वार्तालाप में सरलता-शालीनता के दर्शन होते थे। हृदय की उच्छल संवेदनशीलता एवं उदात्त उदारता दिखाई देती थी जो दर्शक के मन और मस्तिष्क को एक साथ प्रभावित करती थी और कुछ क्षणों में ही बीच की महान् दूरी को समाप्त कर सहज स्नेह-सूत्र में बांध देती थी। दीप्तिमान निर्मल गेहंआ वर्ण, दार्शनिक मुखमण्डल पर चमकतीदमकती हुई निश्छल स्मित-रेखा, उत्फुल्ल नीलकमल के समान मुस्कराती हुई स्नेह-स्निग्ध निर्मल आँखें, स्वर्ण-पत्र के समान दमकता हुआ सर्वतोभद्र भव्य ललाट, कर्मयोग की प्रतिमूर्ति के सदृश संगठित शरीर—यह है हमारे परमाराध्य आचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी म० सा० की पहचान एवं जिसे लोग "युग प्रर्वतक प्राचार्य श्री हस्ती गुरु" के नाम से जानते हैं । इस आध्यात्मिक युग पुरुष को उनकी प्रथम पुण्य तिथि पर कोटिकोटि नमन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy