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________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. प्राचार्य श्री एकता के पक्षधर : __ प्राचार्य प्रवर सदा जैन एकता के समर्थक रहे हैं । यही कारण है कि जब भी एकता का प्रसंग पाया, आप सदैव उसमें अग्रणी रहे । सादड़ी साधु सम्मेलन में प्राचार्य पद का त्याग कर आपने एकता हेतु अपनी सम्प्रदाय का वृहद् श्रमण संघ में विलीनीकरण कर दिया । आपने श्रमण संघ में व्याप्त कमजोरियों और शिथिलाचार पर दृढ़ता से प्रहार किया । आप दिखावे की एकता पसन्द नहीं करते थे । आप कहा करते थे कि "नारंगी के समान ऊपरी एकता कुछ काम की नहीं। नारंगी ऊपर से तो एक होती है परन्तु अन्दर से अलग-अलग, इसके विपरीत खरबूजा ऊपर से भले ही अलग-अलग दिखाई पड़ता है परन्तु होता एक है।' इसी प्रकार प्राचार्य श्री हमेशा खरबूजे की तरह की एकता के पक्षधर रहे। प्राचार्य श्री सामायिक-स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक : आप श्री सामायिक-स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक थे । आपने आत्मा के कल्याण के दो मार्ग बताये जिसमें प्रथम मार्ग-सामायिक, और दूसरा मार्ग स्वाध्याय । आपने सामायिक को जीवन में सुख-शान्ति और आनन्द प्राप्त करा देने वाली रामबाण औषधि बताया है । आपने स्वाध्याय के बारे में बतलाया कि स्वाध्याय अपने मन में उठने वाले विचारों का चिन्तन, मनन और परीक्षण है । अपनी आन्तरिक शक्तियों को जोड़ने का अभ्यास ही स्वाध्याय है । स्वाध्याय नियमित रूप से हो अत: आपने 'स्वाध्याय संघ' के गठन की प्रेरणा दी । परिणाम स्वरूप देश के अनेक प्रान्तों राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र में स्वाध्याय संघ गठित हुए हैं और वे अपनी पूर्ण क्षमता से इस कार्य को करते हुए इसके प्रसार-प्रचार में जुटे हुए हैं। प्राचार्य श्री करुणा के सागर : आचार्य श्री व्यक्ति के प्रति ही नहीं वरन् पशुओं के प्रति भी सदा करुणा, वात्सल्य एवं प्रेम भाव रखते थे । जब आप महाराष्ट्र में सतारा से दक्षिण की ओर विहार कर रहे थे तो आपने देखा कि कुछ व्यक्ति एक भयंकर विषधर नाग को लाठियों से मार रहे थे। यह देखकर आप श्री का करुणाशील हृदय पसीज उठा और भीड़ को चीरते हुए लाठियों के प्रहारों को रोका और घायल नाग को पकड़ा व दूर जंगल में ले जाकर एकान्त स्थान पर छोड़ा। नागराज ने अपने उपकारी के प्रति अनुगृहीत होते हुए जाते समय अपने फन से आचार्य श्री को तीन बार नमस्कार किया और आगे चल पड़ा। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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