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________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. गुरु हस्ती सी हस्ती बोलो कहां मिलेगी? गुरु वाणी से घर-घर की बगिया महकेगी ।। सामायिक-स्वाध्याय के प्रबल प्रचारक जय गुरु हस्ती। "जिनवाणी" के प्रबल प्रचारक जय गुरु हस्ती ।। जैन जगत के दिव्य सितारे जय गुरु हस्ती । कोटि-कोटि भक्तों के प्यारे, जय गुरु हस्ती ॥ मेरी शक्ति कहाँ गुरु-गुणगान करूं मैं । प्रखर भानु के सम्मुख कैसे दोप धरूँ मैं ।। हूँ पामर नादान न जानूं शब्द संजोना। नहीं चाहती फिर भी स्वर्णिम अवसर खोना ।। जय गुरु हस्ती, शत-शत प्रणाम ! –३, सवाई रामसिंह रोड, मेरु पैलेस होटल के पास, जयपुर-४ 000 अमृत-करण ★ अन्तर में शक्ति के विद्यमान रहते हुए भी उसे जगाया नहीं गया तो विकास नहीं होगा। * मुझे अपने घर का स्वामित्व प्राप्त होना चाहिए अर्थात् __ मेरी आत्मा पर कर्म-किरायेदारों का अधिकार न होकर मेरा ही अधिकार होना चाहिए। * भावना में यदि अनासक्ति है तो कोई भी जीवन-निर्वाह का साधन भोग या परिग्रह नहीं बनता । आसक्ति होने पर सभी पदार्थ परिग्रह हो जाते हैं । -प्राचार्य श्री हस्ती - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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