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________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. यह अर्थ कदापि नहीं है कि वह दुःखी, दीन, पीड़ित, अनुकम्पापात्र जनों को दान ही नहीं देगा। सुख की स्थिति में पात्र-अपात्र का विचार किया जाता है, दुःख की स्थिति में पड़े व्यक्ति में तो पात्रता स्वतः आ गई। अभिप्राय यह है कि कर्म निर्जरा की दृष्टि से दिये जाने वाले दान में सुपात्र-कुपात्र का विचार होता है, किन्तु अनुकम्पा बुद्धि से दिये जाने वाले दान में यह विचार नहीं किया जाता। कसाई या चोर जैसा व्यक्ति भी यदि मारणान्तिक कष्ट में हो तो उसको कष्ट मुक्त करना, उसकी सहायता करना और दान देना भी पुण्यकृत्य है, क्योंकि वह अनुकम्पा का पात्र है । दानी यदि अनुकम्पा की पुण्यभावना से प्रेरित होकर दान देता है, तो उसे अपनी भावना के अनुरूप फल की प्राप्ति होती है। इस निमित्त से भी उसकी ममता में कमी होती है। वारणी को व्यवहार में उतारें: गृहस्थ आनन्द भगवान महावीर स्वामी की देशना को श्रवण करके और व्रतों को अंगीकार करके घर लौटता है। उसने महाप्रभु महावीर के चरणों में पहुँच कर उनसे कुछ ग्रहण किया। उसने अपने हृदय और मन का पात्र भर लिया । आप्त पुरुष की वाणी श्रवण कर जैसे आनन्द ने उसे अपने जीवन व्यवहार में उतारने की प्रतिज्ञा की, उसी प्रकार प्रत्येक श्रावक को उसे व्यावहारिक रूप देना चाहिये। ऐसा करने से ही इहलोक-परलोक में कल्याण होगा। मेला लगायें मुक्ति का: ___ जीवन में आमोद-प्रमोद के भी दिन होते हैं। उनका महत्त्व भी हमारे सामने है । यथोचित सीख लेकर हमें उस महत्त्व को उपलब्ध करना है। यों तो मेले बहुत लगते हैं, किन्तु मुक्ति का मेला यदि मनुष्य लगा ले, आध्यात्मिक जीवन बना ले तो उसे स्थायी आनन्द प्राप्त हो सकता है। “संसार में दो किस्म के मेले होते हैं-(१) कर्मबन्ध करने वाले और (२) बंध काटने वाले अथवा (१) मन को मलीन करने वाले और (२) मन को निर्मल करने वाले । प्रथम प्रकार के मेले काम, कुतूहल एवं विविध प्रकार के विकारों को जागृत करते हैं। ऐसे मेले बाल-जीवों को ही रुचिकर होते हैं। संसार में ऐसे बहुत मेले देखे हैं और उन्हें देख कर मनुष्यों ने अपने मन मैले किये हैं। उनके फलस्वरूप संसार में भटकना पड़ा है । अब यदि जन्म-मरण के बन्धनों से छुटकारा पाना है तो मुक्ति का मेला करना ही श्रेयस्कर है। 000 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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