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________________ • ३२२ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व अहिंसा का लाभ बताया कि अहिंसा क्यों करनी चाहिये। पतंजलि के शब्दों में ही आपसे कहूँगा, "अहिंसा प्रतिष्ठायां वैरत्यागः ।" यदि आप चाहते हैं कि दुनिया में आपका कोई दुश्मन न रहे, आपका कोई दुश्मन होगा, तो आप चैन की नींद सो सकेंगे क्या ? यदि पड़ोसी द्वष भावना से सोचता होगा, तो आपको नींद नहीं आयेगी। राजनीतिक क्षेत्र में, समाज के क्षेत्र में, धन्धे बाड़ी के क्षेत्र में भी आप चाहेंगे कि दुश्मन से मुक्त कैसे हों? मुक्ति की तो बहुत इच्छा है, लेकिन कर्मों की मुक्ति करने से पहले संसार की छोटी मोटी मुक्ति तो करलो। संसार चाहता है कि पहले गरीबी से मुक्त हों। आप लोग इण वास्ते ही तो जूझ र्या हो । यदि देश पराधीन है तो सोचोगे कि गुलामी से मुक्त होना चाहिये । अंग्रेजों के समय में अपने को क्या दुःख था ? भाई-बहिनों को और कोई दु:ख नहीं था, सिर्फ यही दु:ख था कि मेरा देश गुलाम है। आप जैसे मान रहे हैं वैसे ही गाँधीजी को क्या दुःख था ? उनको खाने-पीने का, पहनने का दुःख नहीं था, सिर्फ यही दुःख था कि मेरा देश गुलाम है। उन्होंने सोचा कि गुलामी से मुक्त होने के दो तरीके हैं। एक तरीका तो यह है कि जो हमको गुलाम रखे हुए हैं, उनके साथ लड़ें, झगड़ें, गालियाँ दें, उनके पुतले जलावें । दूसरा तरीका यह है कि उनको बाध्य करें, हैरान करें, चेतावनी दें । उनको विवश करदें । उनको यह मालूम हो जाय कि उनके प्राधीन रहनेवालों में से उन्हें कोई नहीं चाहता है इसलिये अब उन्हें जाना पड़ेगा। इन दोनों रास्तों में से कौनसा रास्ता अपनाना चाहिए ? अहिंसा की भूमिका : गाँधी ने इस पर बड़ा चिन्तन किया । शायद यह कह दिया जाय तो भी अनुचित नहीं होगा कि महावीर की अहिंसा का व्यवहार के क्षेत्र में उपयोग करने वाले गाँधी थे । संसार के सामने उसूल के रूप में अहिंसा को रखने वाले महावीर के बाद में वे पहले व्यक्ति हुए। अहिंसा का व्यवहार के क्षेत्र में कैसे उपयोग करना ? घर में इसका कैसे व्यवहार करना ? पड़ोसी का कलह अहिंसा से कैसे मिटाना ? यह चिंतन गाँधीजी के मन में पाया। उन्होंने सोचा कि हमारे लिए यह अमोघ शस्त्र है। हमारे गौरांग प्रभु के पास में तोपें हैं, टैंक हैं, सेना है, तबेला है और हमारे पास में ये सब नहीं हैं । अब इनको कैसे जीतना, कैसे भगाना, कैसे हटाना और देश को मुक्त कैसे करना ? यदि आपकी जमीन किसी के हाथ नीचे दब गई है तो आप क्या करोगे भाई ? आपको शस्त्र उठाना नहीं पाता, चलाना नहीं पाता, तो पहले आप उसको नरमाई के साथ कहोगे। इस पर नहीं मानता है तो धमकी दोगे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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