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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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इससे भी काम नही चलेगा, तो राज्य की अदालत में कानूनी कार्यवाही करोगे, दाबा करोगे । नतीजा यह होगा कि इस पद्धति से काम करते वर्षों बीत जायेंगे। इससे काम नहीं चलेगा।
गाँधीजी ने अहिंसा का तरीका अपनाया। सबसे पहले उन्होंने कहा कि मैं अहिंसा को पहले अपने जीवन में उतारूं । भ० महावीर ने जिस प्रकार अहिंसा को समझा, समाज के जीवन में और विश्व के सम्पूर्ण प्राणी मात्र के जीवन में काम आने वाला अमृत बताया और यह बताया कि अहिंसा का अमृत पीने वाला अमर हो जाता है, जो अहिंसा का अमृत पीयेगा वह अमर हो जायेगा। उसी अहिंसा पर गाँधीजी को विश्वास हो गया। गाँधीजी के सामने भी देश को आजाद करने के लिये विविध विचार रहे। देश की एकता और आजादी मुख्य लक्ष्य था । देश में विविध पार्टियाँ थी। इतिहास के विद्यार्थी जानते होंगे कि आपसी फूट से देश गुलाम होता है और एकता से स्वतंत्र होता है । देश गुलाम कैसे हुआ ? फूट से।
देश में राजा-महाराजा, रजवाड़े कई थे जिनके पास शक्ति थी, ताकत थी, जिन्होंने बड़े-बड़े बादशाहों का मुकाबला किया। छत्रपति शिवाजी कितने ताकतवर थे । राजस्थान को वीरभूमि बताते हैं । वहाँ पर महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़ जैसे बहादुर हुए जिन्होंने आँख पर पट्टी बाँधकर शस्त्र चलाये और बड़े-बड़े युद्धों में विजय पाई, अपनी पान रखी। ऐसे राजा-महाराजाओं के होते हए भी देश गुलाम क्यों हुआ? एक ही बात मालूम होती है कि देश में फूट थी। ताकतवर ने ताकतवर से हाथ मिलाकर, गले से गला मिलाकर, बाँह से बाँह मिलाकर काम करना नहीं सीखा, इसलिये बादशाहों के बाद गौरांग लोग राजा हो गये। उन्होंने इतने विशाल मैदान में राज्य किया कि सारा भारतवर्ष अंग्रेजों के अधीन हो गया। मुगलों से भी ज्यादा राज्य का विस्तार अंग्रेजों ने किया। इतने बड़े विस्तार वाले राज्य के स्वामी को देश से हटाना कैसे ?
अहिंसा की सीख :
___ लेकिन गांधीजी ने देखा कि अहिंसा एक अमोघ शस्त्र है। अहिंसा क्या करती है ? पहले प्रेम का अमृत सबको पिलाती है। प्रेम का अमृत जहाँ होगा वहाँ पहुँचना पड़ेगा । आप विचार की दृष्टि से मेरे से अलग सोचने वाले होंगे। तब भी आप सोचेंगे कि महाराज और हम उद्देश्य एक ही है, एक ही रास्ते के पथिक हैं । मैं भी इसी दृष्टि से सोच रहा हूँ और वे भी इसी दृष्टि से सोच रहे हैं । हम दोनों को एक ही काम करना है। ऐसा सोचकर आप महाराज
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