________________
[ ७ ] अहिंसा-तत्त्व को जीवन में उतारें
परम मंगलमय जिनेश्वर देव का जब-जब स्मरण किया जाता है, मन से विकारों का साम्राज्य एक तरह से बहिष्कृत हो जाता है । विकारों को निर्मूल करने का साधन अपनाने से पहले उसका आदर्श हमारे सामने होना चाहिये।
व्यवहार मार्ग में भी आदर्श काम करता है और अध्यात्म मार्ग में भी आदर्श काम करता है। चलने के लिये, यदि हमको चलकर राह पार करनी है तो कैसे चलना, किधर से चलना और आने वाली बाधाओं का कैसे मुकाबला करना, उसके लिये व्यक्ति को कुछ आदर्श ढूंढ़ने पड़ते हैं।
__ हमारी अध्यात्म साधना का और विकारों पर विजय मिलाने का आदर्श जिनेन्द्र देव का पवित्र जीवन है। वैसे ही आप सांसारिक जीवन में हों, राजनीतिक जीवन में हों या घरेलू जीवन में हों, उसमें भी मनुष्य को कुछ आदर्श लेकर चलना पड़ेगा।
भ० महावीर ने हजारों वर्ष पहले जो मार्ग अपनाया, उसे तीर्थंकर देव की स्तुति करके शास्त्रीय शब्दों में इस प्रकार कहा गया है-"अभयदयाणं, चक्खुदयाणं ।" यह बढ़िया विशेषण है और अब अपने सामने चिन्तन का विषय है।
वास्तव में दूसरे को अभय वही दे सकता है, जो पहले स्वयं अभय हो जाय । खुद अभय हो जायगा, वही दूसरों को अभय दे सकता है। और खुद अभय तभी होगा जब उसमें हिंसा की भावना न रहेगी। अष्टांग योग :
हमारे यहां एक साधना प्रिय आचार्य हुए हैं, पतंजलि ऋषि । उन्होंने अष्टांग योग की साधना मुमुक्षुजनों के सामने रखी । अष्टांग योग में पहला हैयम, फिर नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । यम पाँच प्रकार के हैं । अहिंसा, सत्य अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । सबसे पहला स्थान अहिंसा को दिया गया है। उन्होंने कहा कि जब तक अहिंसा को साध्य बनाकर नहीं चलोगे, तब तक आत्मा को, समाज को, राष्ट्र को और किसी को दुःख मुक्त नहीं कर सकोगे। अहिंसा एक ऐसी चीज है, जो अति आवश्यक है।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org