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मेरे जीवन-निर्माता पूज्य गुरुवर्य !
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" श्री जगदीशमल कुम्भट
बाल्यावस्था में मेरी बड़ी मातुश्री श्रीमती राजकुंवर जी कुम्भट (वर्तमान में महासती श्री राजमती जी म. सा.) की सतत प्रेरणा से मुझे महामहिम आचार्य भगवन्त पूज्य गुरुवर्य के दर्शनों का सौभाग्य सं० २००७ में पीपाड़ चातुर्मास में मिला। मेरे नाना स्व० श्री मोहनराज जी भण्डारी के साथ मैं पीपाड़ गया। वह मेरे जीवन का स्वर्णिम अवसर था। भगवन् ने पूछा-क्या करते हो ? मैं कुछ जानता ही नहीं था इसलिए क्या जवाब देता ? भगवन् ने अत्यन्त आत्मीयता से कहा-२१ नमस्कार मंत्र गिना करो। मैंने हाँ भरी।
पीपाड़ में भगवन् के दर्शनार्थ जाने का मुझे तीन-चार बार और अवसर मिला । नमस्कार मंत्र से एक माला और फिर सप्त कुव्यसन के त्याग तक के प्रत्याख्यानों से प्रारम्भ संस्कार भगवन् के कृपा-प्रसाद से पल्लवित-पुष्पित होते रहे । आज भगवन् पार्थिव देह से विद्यमान नहीं हैं पर उनकी प्रेरणाप्रद हितशिक्षाएँ मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित कर रही हैं।
वस्तुतः भगवन् मेरे लिए ही नहीं, सभी के लिए प्रेरणापुंज रहे । लाखोंलाख भक्त भगवन् के कृपा-प्रसाद से जीवन-निर्माण की ओर आगे बढ़े हैं। मेरे सामाजिक क्षेत्र में आने के पीछे भी भगवन् की मुख्य प्रेरणा रही। युवक संघ की गतिविधियों से संघ-सेवा में मेरी सक्रियता बढ़ी। संघ-सेवा में यद्यपि मैं नया हूँ, फिर भी मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि रत्नवंश पूर्वाचार्यों की परम्परा और प्राचार्य भगवन् के बतलाये प्रशस्त मार्ग पर गतिशील है।
महामहिम आचार्य भगवन् के प्रशस्त मार्ग पर हम आगे बढ़ें तभी हमारा गुणगान करना और पुण्य तिथि मनाना सार्थक होगा।
–महामंत्री, अ०भा० श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ नवकार, प्लाट-जी, दूसरी 'सी' सड़क, सरदारपुरा, जोधपुर-३४२ ००३
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