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गुणसागर परम पावन गुरुदेव !
[ श्री ज्ञानेन्द्र बाफरणा
मेरी जन्म भूमि भोपालगढ़ में पूज्य गुरुदेव के संवत् २०२१ के वर्षावास की पावन स्मृतियाँ प्राज मानस पटल पर जीवंत हो उठी हैं । परम पूज्य गुरुदेव
सान्निध्य में बैठकर प्रश्नचर्चा एवं ज्ञानचर्चा के वे क्षण मेरे जीवन के अनमोल अविस्मरणीय क्षण हैं । उन्होंने स्वाध्याय के प्रति रुचि जागृत की और शास्त्रों की कुञ्जी थोकड़ों की ओर जिज्ञासा बढ़ाई। एक दिन आचार्य अमित गति कृत 'सत्वेषु मैत्रीं' श्लोक एक ही दिन में याद कर लेने की हमें प्रेरणा की । गुरुदेव उस श्लोक के मूर्तिमान आदर्श थे । उनके जीवन में जहाँ प्राणिमात्र के प्रति मैत्री की गंगा प्रवाहमान थी, वहीं दूसरी ओर प्रत्येक जाने-अनजाने व्यक्ति के गुणों के प्रति सहज प्रमोद भाव था । पूज्य भगवन् जहाँ अपने आलोचक की भी निन्दा सुनने से सर्वथा परहेज करते, वहीं किसी भी व्यक्ति या महापुरुष के गुणों का परिचय पाकर, सुनकर सहज प्रसन्नता का अनुभव करते । दूसरों के गुणों की प्रशंसा सुनते-सुनते प्रमोद भावनाजन्य प्रसन्नता उनके आनन पर प्रकट होने लगती, मानो प्रेम, स्नेह एवं प्रसन्नता का सागर लहरा रहा हो ।
दीन-हीन प्रबोध जनों एवं क्लिष्ट प्राणियों के प्रति उनके हृदय में सहज करुणा का सागर लहराता, प्राणिमात्र के कल्याण की भावना उनके हृदय में रहती, सभी तरह की परिस्थितियों एवं व्यक्तियों के प्रति उन महायोगी के मन में तटस्थ भाव रहता । यही साधना तो 'समाधि वरण' के समय चरम रूप में हम सबके सामने प्रगट हुई थी । जो भी पूज्य भगवन् के सम्पर्क में आया, वह सदैव के लिए श्रद्धावनत हो गया, जिसे भी उन प्रेरणा पुंज की प्रेरणा पाने का सौभाग्य मिला, वह समाज में अपना स्थान बना गया । वस्तुतः भगवन् साधारण को असाधारण एवं भक्त को भगवान बनाने में सक्षम थे । उनके जीवन में विविध गुणों का अद्भुत समन्वय था । वे ज्ञानसागर थे तो उत्कृष्ट क्रिया के धनी भी, ध्यान-साधक थे तो मौनी भी, ओजस्वी वक्ता थे तो प्रखर लेखक भी, इतिहास लेखक ही नहीं इतिहास निर्माता भी । वे स्वयं अपनी क्रिया में पूर्णत: प्राचीन परम्परा के हामी थे, पर उनके भक्तों में आधुनिक शिक्षा प्राप्त लोगों का बाहुल्य था । ऐसे अद्भुत एवं विरल योगी के चरणों में कोटिशः वंदन - अभिवंदन ।
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- उपाध्यक्ष, अ. भा. श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ, सी- ५५, शास्त्री नगर, जोधपुर- ३४२००३
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