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काव्य
गुरु हस्ती चालीसा
0 श्री गौतम मुनि
महावीर मंगल करो, विद्या दो वरदान । चालीसा गुरुदेव का, गाऊँ हृदय धर ध्यान ।।
जय गजेन्द्र जय जय गुरु हस्ती। पूज्य गुरु आचार्य कहाए। पार करो अब मेरी किस्ती ॥१॥ संत, सती, श्रावक मन भाए ॥११॥ पौष सुदि चौदस दिन अाया। विचर-विचर उपदेश सुनाया। बोहरा कुल का भाग्य सवाया ॥२॥ फिर से जिनशासन चमकाया ।।१२।। केवल कुल में हुए अवतारी। दर्शन पाने जो भी आया। शोभा आपकी है अति भारी ॥३॥ हुआ प्रभावित अति हर्षाया ।।१३।। जन्में शहर पीपाड़ में प्यारे। धर्म ज्योति ऐसी प्रकटाई । माँ रूपा के लाल दुलारे ॥४॥ लाखों भक्त बने अनुयायी ।।१४।। धन्य शहर अजमेर के मांई। आगम शास्त्र के थे अति ज्ञाता। गुरु शोभा से दीक्षा पाई ।।५।। जिनशासन में हुए विख्याता ।।१५।। बाल उमर में दीक्षा धारी। घर-घर ज्ञान का दीप जलाया। महिमा चहुँ दिश में विस्तारी ।।६।। जग को धर्म का मर्म बताया ।।१६।। होकर पागम शास्त्र में लीना। वाणी में था जादू नामी । लघु वय में ही भये प्रवीणा ॥७॥ बने अनेकों सुपथ गामी ।।१७।। पलक प्रमाद न था जीवन में। धर्म ज्ञान की गंगा बहाई । प्रतिपल रहते स्व चिंतन में ॥८॥ पतित जनों की नाव तिराई ॥१८॥ पाया बोध शास्त्र का गहरा। सामायिक स्वाध्याय सिखाया। ज्ञान-क्रिया का योग सुनहरा ॥६॥ जन-जन को सन्मार्ग बताया ।।१६।। बीस वर्ष की वय अति छोटी। चरण आपके जहाँ पड़ जाते। गुरुवर पाई पदवी मोटी ॥१०॥ धर्म ध्यान का ठाठ लगाते ।।२०।।
*प्राचार्य श्री की मासिक पुण्य तिथि पर प्रवचन-सभा जोधपुर में मुनिश्री द्वारा प्रस्तुत कविता।
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