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100 आध्यात्मिकता के गौरव शिखर
D डॉ. सम्पतसिंह भाण्डावत सामायिक और साधना के प्रबल प्रेरक आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. संयम-साधना, शुद्ध सात्विक साधु-मर्यादा, विशिष्ट ज्ञान और ध्यान के शृंग, रत्नत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र-आराधना में लीन समाधिस्थ योगी और आध्यात्मिकता के गौरव शिखर थे।
उन्होंने अपने प्रवचनों से समाज की सुप्त आत्मा को जगाया, श्रेष्ठ मूल्यों का नवनीत प्रदान किया, ज्योतिस्तंभ के रूप में प्रकाश का ज्ञान दिया, धर्म की नयी परिभाषा दी और भौतिकता के जाल में फंसे मनुष्य को आध्यात्मिकता का अमृत पिलाया। आचार्य श्री ने ७० वर्षों तक ज्ञान और साधना की स्रोतस्विनी प्रवाहित की । इस शताब्दी में आचार्य श्री की वाणी से जो निर्भरिणी फूटी उसमें असंख्य श्रावकों ने डुबकी लगाकर आत्मानन्द प्राप्त किया। आचार्य श्री के संथारापूर्वक समाधिमरण ने जैन परम्परा में एक कीर्तिमान की स्थापना की है।
आचार्य श्री में सागर की गहराई और पर्वत की ऊँचाई थी, आचार की दृढ़ता और विचारों की उदारता थी, अद्भुत तेज और अपूर्व शान्ति थी, विशुद्ध ज्ञान और निर्मल आचरण था । वे महामनीषी साधकों के प्रेरक थे, साम्प्रदायिक सौहार्द और समता के विश्वासी थे, धैर्य की मूर्ति और भव्यता की प्रतिभूति थे, अहिंसा, करुणा और दया के सागर थे, ज्ञानी और ध्यानी थे, तात्विक और सात्विक थे, अनन्त करुणा, अनन्त मैत्री और अनन्त समता के प्रतीक थे । मेरी दृष्टि में आचार्य श्री के व्यक्तित्व के ये विभिन्न सोपान थे और इन सोपानों के द्वारा प्राचार्य श्री आध्यात्मिकता के गौरव शिखर पर पहुँच कर मूर्धन्य अध्यात्मयोगी बन गये।
इस अवसर्पिणी काल में आचार्य श्री ने आध्यात्मिकता की दुंदुभि बजाकर भौतिकता में फंसे सुप्त समाज को जगाया, अर्थ के ऊपर धर्म को प्रतिष्ठित किया, अनैतिकता के स्थान पर नैतिकता की प्रतिष्ठा की, साम्प्रदायिकता की सीमाओं को तोड़कर श्रमण संस्कृति के प्रवर्धन और संवर्धन के द्वारा मानवीय धर्म की प्रतिष्ठा की।
__ आचार्य श्री की प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हम संकल्प लें कि आचार्य श्री द्वारा प्रतिपादित श्रमण संस्कृति के मूल्यों को हम अपने जीवन में उतारकर, भौतिक लिप्तता को त्यागकर, आध्यात्मिकता की ओर प्रयाण करेंगे।
-अध्यक्ष, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, रैनबो हाऊस, पावटा, मंडोर रोड, जोधपुर
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