________________
र
मेरे मन के भगवन् !
0 श्री मोफतराज मुणोत
मेरे मन के भगवन् महामहिम पूज्य गुरुदेव श्रीमज्जैनाचार्य श्री हस्तीमल जी म. सा. गत वर्ष (प्रथम वैशाख शुक्ला अष्टमी) १३ दिवसीय तप-संथारे के साथ रवि-पुष्य नक्षत्र में साधना का चरम और परम लक्ष्य प्राप्त कर मृत्युंजयी बने । वह दृश्य लाखों-लाख श्रद्धालुओं के हृदय-पटल पर सदा-सर्वदा विद्यमान रहेगा। भगवन् के स्वार्गारोहण को एक वर्ष होने जा रहा है। उस दिव्य दिवाकर की प्रथम पुण्य तिथि स्थान-स्थान पर त्याग-तप के साथ मनाई जा रही है, जानकर प्रमोद है ।
महामहिम आचार्य भगवन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर रत्नवंश के अष्टम पट्टधर परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर पूज्य श्री हीराचन्द्रजी म. सा., परम श्रद्धेय उपाध्याय पं. रत्न श्री मानचन्द्रजी म. सा. आदि ठाणा के सान्निध्य में जोधपुर चातुर्मास में १६ से १८ अक्टूबर, १९६१ तक अ. भा. जैन विद्वत् परिषद् के तत्त्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय विद्वत् संगोष्ठी में देश भर के उच्च कोटि के विद्वानों के विचार-श्रवण का मुझे सौभाग्य मिला। प्राचार्य भगवन् के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर कहने या लिखने के लिए गहन चिन्तनमनन-अध्ययन और अनुसंधान चाहिये । वस्तुतः युगद्रष्टा-युग मनीषी के यशस्वी जीवन पर कई ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं। हम भगवन् के गुण स्मरण करें, अवश्य करें लेकिन हम केवल गुण-स्मरण कर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं समझे । हमें उस युग पुरुष की सद् शिक्षाओं पर आचरण का रूप उजागर करना है । हम भगवन् के आदेश-निर्देश-उपदेश पर अमल करें, तभी हम और हमारा संघ निरन्तर प्रगति-पथ पर अग्रसर होगा।
भगवन् की प्रथम पुण्य तिथि पर त्याग-तप की प्रभावना के साथ भगवन् की सद् शिक्षामों पर बढ़ने का संकल्प लें, इसी शुभ भावना के साथ
-अध्यक्ष, अ. भा. श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ ६१, कल्पवृक्ष, २७ बी. जी. खेर मार्ग, बम्बई-४०० ००६
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org